1. निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए : प्रणाम का भारतीय संस्कृति में बड़ा महत्त्व है । यह अपने से बड़ो, श्रद्धेय तथा आदरणीय जनों के प्रति आत्मीयता का प्रतीक है । माता - पिता के अतिरिक्त समाज के सभी वृद्धजनों , अतिथियों , साधु - संतों को अपनी परंपरा के अनुसार प्रणाम करना मानव - धर्म है । वस्तुतः प्रणाम जीवन रूपी क्षेत्र में आशीर्वाद का अन्न उगाने का बीजमंत्र है । प्रणाम के संबंध में मनु की मान्यता है कि वृद्धजनों व माता - पिता को जो नित्य सेवा - प्रणाम से प्रसन्न रखता है , उसकी आयु , विद्या , यश और बल- चारों की वृद्धि होती है । " अभिवादनशीलस्य नित्यं वृद्धोपसेविनः । चत्वारि तस्य वर्धन्ते आयुर्विद्या यशोबलम् ॥ " प्रणाम के बल पर ही बालक मार्कण्डेय ने सप्तर्षियों से चिरंजीवी होने का वरदान प्राप्त किया था । महाभारत के युद्ध के आरंभ में युधिष्ठिर ने पितामह भीष्म , गुरुद्रोण , कुलगुरु कृपाचार्य एवं महाराज शल्य को प्रणाम करके उनसे ' विजयी भव ' का आशीर्वाद प्राप्त किया । प्रणाम की महत्ता निरूपित करते हुए संत तुलसीदास कहते हैं कि " वह मानव - शरीर व्यर्थ है जो सज्जनों और गुरुजनों के सम्मुख नहीं झुकता । " ( क ) प्रणाम करने वालों को किन चीजों की प्राप्ति होती है ? 2 ( ख ) चिरंजीवी होने का वरदान किसको और किसने दिया ? 2 ( ग ) प्रणाम किस प्रकार का बीजमंत्र है ? 2 ( घ ) किसके द्वारा और क्यों मानव शरीर को व्यर्थ कहा गया है ? 2 ( ङ ) उपर्युक्त गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए । 1 ( च ) ' प्रणाम ' शब्द का एक पर्यायवाची रूप लिखिए ।
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प्रणाम करने वालो को आयु, विद्या, यश, बल की प्राप्त होती है।
2 चिरंजीवी होने का वरदान बालक मार्कण्डेय को सप्तर्षियो ने दिया
3 प्रणाम जीवन रूपी क्षेत्र मे आशीर्वाद का अन्न उगाने का बीज मन्त्र है
4 संत तुलसीदास द्वारा मानव शरीर को व्यर्थ कहा गया है जो सज्जनो और गुरुजनो के सम्मुख नही झुकता
5 प्रणाम का भारतीय संस्कृति मे महत्व
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