Hindi, asked by sanjaysharma09236, 6 months ago

1. निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए।
लोकतंत्र के तीनों पार्यों-विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका का अपना-अपना महत्त्व है, किंतु
जब प्रथम दो अपने मार्ग या उद्देश्य के प्रति शिथिल होती है या संविधान के दिशा-निर्देशों की
अवहेलना होती है, तो न्यायपालिका का विशेष महत्त्व हो जाता है। न्यायपालिका ही है जो हमें आईना
दिखाती है, किंतु आईना तभी उपयोगी होता है जब उसमें दिखाई देने वाली चेहरे की विद्रूपता को
सुधारने का प्रयास हो । सर्वोच्च न्यायालय के अनेक जनहितकारी निर्णमों को कुछ लोगों ने न्यायपालिका
की अतिसक्रियता माना, पर जनता को लगा कि न्यायालय सही है। राजनीतिक चश्मे से देखने पर भ्रम
की स्थिति हो सकती है।
प्रश्न यह है कि जब संविधान की सत्ता सर्वोपरि है तो उसके अनुपालन में शिथिलता क्यों होती है?
राजनीतिक दलगत स्वार्थ या निजी हित आड़े आ जाता है और यही भ्रष्टाचार को जन्म देता है | हम
कसमें खाते हैं और यही भ्रष्टाचार को जन्म देता है। हम कसमें खाते हैं और जनकल्याण की ओर कदम
उठाते हैं, आत्मकल्याण के | ऐसे तत्वों से देश को, समाज को सदा खतरा रहेगा | अतः जब कभी कोई
न्यायालाय ऐसे फैसले देता है जो समाज कल्याण के हों और राजनीतिक ठेकेदारों को उनकी औकात
बताते हों, तो जनता को उसमें, आशा की किरण दिखाई देती है | अन्यथा तो वह अन्धकार में जीने को
विवश है ही।
(क) लोकतंत्र में न्यायपालिका कब विशेष महत्वपूर्ण हो जाती है और क्यों ? (2)
निताने का तगा तात्पर्य है और न्यायपालिका कैसे आईना दिखाती है ? (2)​

Answers

Answered by lokinder2005
0

Answer:

लगभग 14 महीने से कर्नाटक में सरकार को लेकर चल रही अस्थिरता एक सप्ताह तक चले ड्रामे के बाद 23 जुलाई को तब समाप्त हो गई, जब सत्तारूढ़ कॉन्ग्रेस और जद (यू) की सरकार विश्वास मत हार गई और मुख्यमंत्री एच.डी. कुमारस्वामी ने इस्तीफा दे दिया। इस सारी कवायद के दौरान विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका और राज्यपाल की भूमिका का मुद्दा बार-बार चर्चा में आता रहा, क्योंकि ये चारों ही इस प्रक्रिया के दौरान सक्रिय रहे।

आज़ादी के बाद भारतीय संविधान के निर्माताओं ने देश के लोकतंत्र को मज़बूत बनाने और शासन व्यवस्था को सुचारु रूप से चलाने के लिये केंद्रीय स्तर पर जहाँ संसद की व्यवस्था की, वहीं राज्यों में विधानसभा के गठन का प्रस्ताव किया। इसके साथ ही लोकसभा के संचालन और गरिमा बनाए रखने के लिये लोकसभा अध्यक्ष और राज्यों में विधानसभा अध्यक्ष के पद का प्रावधान किया।

राज्यों में विधानसभा अध्यक्ष सदन की कार्यवाही और उसकी गतिविधियों के संचालन के लिये पूरी तरह जवाबदेह होता है। विधानसभा अध्यक्ष से यह अपेक्षित होता है कि वह दलगत राजनीति से ऊपर उठकर सभी दलों के साथ तालमेल बनाकर इस पद की गरिमा को बरकरार रखेगा। विधानसभा अध्यक्ष का निर्विरोध निर्वाचित होना और उसका किसी भी दल के प्रति झुकाव नहीं होने वाला स्वरूप समाज की उस राजनीतिक जागरूकता का प्रतीक है जो लोकतंत्रीय व्यवस्था की प्रमुख आधारशिला है।

सीधे-सरल शब्दों में कहें तो विधायिका का काम कानून बनाना है, कार्यपालिका कानूनों को लागू करती है और न्यायपालिका कानून की व्याख्या करती है। इन तीनों को लोकतंत्र का आधार-स्तंभ माना जाता है।

Similar questions