Hindi, asked by sanjaysharma09236, 7 months ago

1. निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए।
लोकतंत्र के तीनों पायों-विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका का अपना-अपना महत्त्व है, किंतु
जव प्रथम दो अपने मार्ग या उद्देश्य के प्रति शिथिल होती है या संविधान के दिशा-निर्देशों की
अवहेलना होती है, तो न्यायपालिका का विशेष महत्व हो जाता है। न्यायपालिका ही है जो हमें आईना
दिखाती है, किंतु आईना तभी उपयोगी होता है जब उसमें दिखाई देने वाली चेहरे की विद्रूपता को
सुधारने का प्रयास हो | सर्वोच्च न्यायालय के अनेक जनहितकारी निर्णमों को कुछ लोगों ने न्यायपालिका
की अतिसक्रियता माना, पर जनता को लगा कि न्यायालय सही है। राजनीतिक चश्मे से देखने पर भ्रम
की स्थिति हो सकती है।
प्रश्न यह है कि जब संविधान की सत्ता सर्वोपरि है तो उसके अनुपालन में शिथिलता क्यों होती है?
राजनीतिक दलगत स्वार्थ या निजी हित आड़े आ जाता है और यही भ्रष्टाचार को जन्म देता है। हम
कसमें खाते हैं और यही भ्रष्टाचार को जन्म देता है। हम कसमें खाते हैं और जनकल्याण की ओर कदम
उठाते हैं, आत्मकल्याण के | ऐसे तत्वों से देश को, समाज को सदा खतरा रहेग|| अतः जब कभी कोई
न्यायालाय ऐसे फैसले देता है जो समाज कल्याण के हों और राजनीतिक ठेकेदारों को उनकी औकात
बताते हों, तो जनता को उसमें, आशा की किरण दिखाई देती है । अन्यथा तो वह अन्धकार में जीने को
विवश है ही।
(क) लोकतंत्र में न्यायपालिका कब विशेष महत्वपूर्ण हो जाती है और क्यों ? (2)
(ख) आईना दिखाने का क्या तात्पर्य है और न्यायपालिका कैसे आईना दिखाती है? (2)
(ग) 'चेहरे की विद्रूपता' से क्या तात्पर्य है और यह संकेत किनके प्रति किया गया है ? (2)
(घ) भ्रष्टाचार का जन्म कब और कैसे होता है ? (2)
(ड.) आशय स्पष्ट कीजिए-(2)
"अन्यथा तो वह अंधकार में जीने को विशेष है ही।"​

Answers

Answered by shishir303
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(क) लोकतंत्र में न्यायपालिका कब विशेष महत्वपूर्ण हो जाती है और क्यों?

► लोकतंत्र में न्यायपालिका तक विशेष महत्वपूर्ण हो जाती है, जब लोकतंत्र के अनुरूप स्तंभ कार्यपालिका और विधायिका अपने कर्तव्य से विमुख हो जाएं और अपने संवैधानिक उद्देश्यों के प्रति शिथिल हो जाएं।

(ख) आईना दिखाने का क्या तात्पर्य है और न्यायपालिका कैसे आईना दिखाती है?

► आईना दिखाने से तात्पर्य कार्यपालिका और विधायिका के असंवैधानिक कृत्यों पर अंकुश लगाने से है। न्यायपालिका राजनीति के ठेकेदारों के विरुद्ध ऐसे फैसले देकर जो कि समाज के कल्याण के लिए हो और राजनीतिक ठेकेदारों को उनकी औकात बताते हों, उन्हें आईना दिखाती है।

(ग) 'चेहरे की विद्रूपता' से क्या तात्पर्य है और यह संकेत किनके प्रति किया गया है?

चेहरे की विद्रूपता से तात्पर्य उस स्थिति से है, जब अपनी गलती करने के बाद उत्पन्न होती है, और वो समझ में आ जाये। यह संकेत कार्यपालिका के लिए किया गया है, जो कोई असंवैधानिक कार्य करें और यदि न्यायपालिका में आईना दिखाएं. तो वह अपनी गलती को माने और उसे सुधारने का प्रयत्न करें।

(घ) भ्रष्टाचार का जन्म कब और कैसे होता है?

► भ्रष्टाचार का जन्म तब होता है, जब राजनेताओं में अपने दलगत स्वार्थ और उनका निजी के आड़े आ जाता है और वह अपने स्वार्थ और निजी हित को देश हित से ऊपर रखते हैं।

(ड.) आशय स्पष्ट कीजिए-

"अन्यथा तो वह अंधकार में जीने को विशेष है ही।"​

► इन पंक्तियों से आशय यह है कि न्यायपालिका ही जनता के लिए अंतिम आस होती है, जो कार्यपालिका के निरंकुश होने पर उस पर अंकुश लगाए। यदि न्यायपालिका भी भ्रष्ट हो गई अपना काम सही ढंग से नहीं करें तो फिर देश की जनता अंधकार में जीने को ही विवश है।

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