1. निम्नलिखित गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर चयन करें:। सेवा, त्याग तथा दान-धर्म का भारतीय संस्कृतिक चेतना में अत्यधिक महत्व है। भारतीय दर्शन ने जीव मात्र को ईश्वरीय रूप माना है। आत्मा तथा परमात्मा के विचार ने हमारे जीवन को सहज, सुगम एवं परमार्थकारी बनाया है। सारा विश्व हमारा घर है और हम सभी की भलाई के लिए कामना करें, यही हमारे जीवन का परम लक्ष्य निर्धारित किया गया है। अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए, जीवन में शुचिता और गंभीरता का समावेश कर इसे सुखी बनाने में सहायक हो सकते हैं। हमें चाहिए कि हम अपने अंत: करण को शुद्ध कर रूढ़ियों, अंध-परंपराओं से पृथक होकर सेवा-मात्र को अपना मार्ग बनाएं। किसी दिन-दु:खी को देखकर यदि हमारे हृदय में पीड़ा का अनुभव नहीं होता तो अवश्य ही हमने अपनी महान संस्कृति और दर्शन से कुछ भी नहीं सीखा है। हमें यह समझना चाहिए कि पीड़ित व्यक्ति भी हमारी तरह हाड़-मांस का जीवित प्राणी है, जिसके भीतर अनुभव करने वाली इंद्रियां है। भूख-प्यास सबको लगती है। यदि हमारे सामने कोई व्यक्ति भूखा-प्यासा, वस्त्रविहीन रहता है, तो हमारे लिए यह गर्व की बात नहीं की हम लंबी-लंबी मोटर गाड़ियों से धूल उड़ाते चलते हैं। आज भारतीय संस्कृति पर उपभोक्तावादी पाश्चात्य संस्कृति की कालिमा का प्रभाव पड़ा है, जिसके कारण हम'बंधुत्व'और 'सहानुभूति'को भूलते जा रहे हैं। क. जीवन का लक्ष्य नहीं है।
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सेवा, त्याग तथा दान
जीवन को सहज बनाना
अधं परंपराओं को अपनाना
प्रेरमाथर्थ और भलाई करना
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अंध परम्पराओ को अपनाना
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सेवा त्याग तथा दान धर्म
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