CBSE BOARD XII, asked by Vijaysuthar, 11 months ago

1. निम्नलिखित में से कौन-सा सामूहिक अशाब्दिक
बुद्धि परीक्षण नहीं है?
Stin आर्मी बीटा परीक्षण
(2) आर्मी अल्फा परीक्षण
(3) शिकागो परीक्षण
(4) रेवेन्स प्रोग्रेसिव मैट्रिक्स​

Answers

Answered by rohitsharma2k613
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Answer:

व्यक्ति केवल शारीरिक गुणों से ही एक दूसरे से भिन्न नहीं होते बल्कि मानसिक एवं बौद्धिक गुणों से भी एक दूसरे से भिन्न होते हैं। ये भिन्नताऐं जन्मजात भी होती हैं। कुछ व्यक्ति जन्म से ही प्रखर बुद्धि के तो कुछ मन्द बुद्धि व्यवहार वाले होते हैं।

आजकल बुद्धि को बुद्धि लब्धि के रूप में मापते हैं जो एक संख्यात्मक मान है। बुद्धि परीक्षण का आशय उन परीक्षणों से है जो बुद्धि-लब्धि के रूप में केवल एक संख्या के माध्यम से व्यक्ति के सामान्य बौद्धिक एवं उसमें विद्यमान विभिन्न विशिष्ट योग्यताओं के सम्बंध को इंगित करता है। कौन व्यक्ति कितना बुद्धिमान है, यह जानने के लिए मनोवैज्ञानिकों ने काफी प्रयत्न किए। बुद्धि को मापने के लिए मनोवैज्ञानिकों ने मानसिक आयु (MA) और शारीरिक आयु (C.A.) कारक प्रस्तुत किये हैं और इनके आधार पर व्यक्ति की वास्तविक बुद्धि-लब्धि ज्ञात की जाती है।

Explanation:

उन्नीसवीं सदी में मंद बुद्धि वाले बालकों एवं व्यक्तियों के प्रति बहुत ही बुरा व्यवहार होता था। उनको जंजीरों में बांधकर रखा जाता था एवं उन्हें पीटा जाता था। लोगों की यह मान्यता थी कि इनमें दुरात्माओं का प्रवेश हो गया है। इन कथित दुरात्माओं को निकालने हेतु मंद बुद्धि बालकों की पिटाई की जाती थी। अतः मन्द बुद्धि बालकों के लिए समस्या यह थी कि उनकी बुद्धि के बारे में उस समय तक कोई जानता नहीं था। फ्रांस में बुद्धि-दौर्बल्य या मन्दबुद्धि बालकों की इस समस्या ने गम्भीर रूप धारण कर लिया तब तक वहां की सरकार और मनोवैज्ञानिकों का ध्यान इस समस्या पर गया। इस समस्या का समाधान करने हेतु फ्रांस के सुप्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक इटार्ड (Itord) तथा उनके पश्चात् सेग्युन (Seguin) महोदय ने मंद बुद्धि बालकों की योग्यताओं के अध्ययन एवं मापन करने हेतु विभिन्न विधियों का प्रयोग किया। इस अध्ययन के अन्तर्गत उन्होंने कुछ बुद्धि परीक्षणों का निर्माण किया। मंद बुद्धि बालकों के उपचार के लिए कई विद्यालयों की स्थापना हुई जहां मंद बुद्धि बालकों का परीक्षण किया जाता था तथा उनकी बुद्धि विकास हेतु उन्हें प्र्यिक्षण प्रदान किया जाता था। इस प्रकार के प्रयत्न जर्मनी, इंग्लैंड तथा अमेरिका में भी हुए। परन्तु बुद्धि परीक्षण के सही मापन के क्षेत्र में विकासपूर्ण कार्य का श्रेय फ्रांस को ही जाता है। फ्रांस में मंदबुद्धि बालकों को सही प्रशिक्षण देने के लिए एवं उनकी शिक्षा का समुचित प्रबंध करने हेतु एक समिति बनाई गई और उनका अध्यक्ष सुप्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक अल्फ्रेड बिने (Alfred Binet) को बनाया गया। बिने पहले वे मनोवैज्ञानिक थे जिन्होंने बुद्धि को वैज्ञानिक एवं व्यवस्थित रूप में समझने का प्रयास किया। उनको बुद्धि के मापन क्षेत्र का जन्मदाता माना जाता है। बिनेट ने यह स्पष्ट किया कि बुद्धि केवल एक कारक नहीं है जिसको कि हम एक विशेष परीक्षण द्वारा माप सकें अपितु यह विभिन्न योग्यताओं की वह जटिल प्रक्रिया है जो समग्र रूप से क्रियान्वित होती है।

सन् 1905 में बिनेट ने साईमन के सहयोग से प्रथम बुद्धि मापनी अर्थात् बुद्धि परीक्षण का निर्माण किया जिसे बिने-साईमन बुद्धि परीक्षण का नाम दिया। ये बुद्धि परीक्षण तीन से सोलह वर्ष की आयु के बच्चों की बुद्धि का मापन करता है। इस परीक्षण में सरलता से कठिनता के क्रम में तीस पदों का प्रयोग किया गया। इस परीक्षण से व्यक्तियों के बुद्धि के स्तरों का पता लगाया जा सकता है। इस परीक्षण की सहायता से मंद बुद्धि बालकों को तीन समूह में बांटा गया है-

   जड़बुद्धि (Idiots)

   हीन बुद्धि (Imbeciles)

   मूढ़ बुद्धि (Morons)

सन् 1908 में बिने ने अपने बुद्धि परीक्षण में पर्याप्त संशोधन किया और संशोधित बुद्धि परीक्षण का प्रकाशन किया। इस परीक्षण में 59 पद रखे। ये पद अलग-अलग समूहों में हैं, जो अलग-अलग आयु के बालकों से संबंधित हैं। इस परीक्षण में सर्वप्रथम मानसिक आयु (मेन्टल एज) कारक को समझा गया।

सन् 1911 में बिने ने अपने 1908 के बुद्धि परीक्षण में पुनः संशोधन किया। जब बिने का बिने साईमन बुद्धि परीक्षण 1908 विभिन्न देशों जैसे बेल्जियम, इंग्लैण्ड, अमेरिका, इटली, जर्मनी में गया तो मनोवैज्ञानिकों की रूचि इस परीक्षण की ओर बढ़ी। कालान्तर में इस परीक्षण की आलोचना भी हुई क्योंकि यह परीक्षण निम्न आयुस्तर वालों के लिए तो ठीक था, परन्तु उच्च आयुवर्ग के बालकों के लिए सही नहीं था। अतः इस कमी का सुधार करने हेतु बिने ने अपने 1908 परीक्षण में पर्याप्त सुधार किया। उन्होंने अपने परीक्षण के फलांकन पद्धति में भी सुधार और संशोधन किया तथा 1911 में अपनी संशोधित बिने-साईमन मापनी या परीक्षण का पुनः प्रका्यन किया। उन्होंने इस परीक्षण के मानसिक आयु और बालक की वास्तविक आयु के बीच सम्बन्ध स्थापित किया और इसके आधार पर उन्होंने बालकों को तीन वर्गों में बांटा ये वर्ग हैं-

   सामान्य बुद्धि (Regular Intelligent)

   श्रेष्ठ बुद्धि (Advanced Intelligent)

   मदं बुद्धि (Retarded Intelligent) वाले बालकों का वर्ग।

बिने के अनुसार जो बालक अपनी आयु समूह से उच्च आयु समूह वाले प्रश्नों का हल कर लेते हैं तो वे श्रेष्ठ बुद्धि वाले कहलाते हैं और यदि बालक अपनी आयु समूह से कम आयु समूह वाले प्रश्नों का ही हल कर पाते हैं तो वे मन्द बुद्धि बालक होते हैं।

अतिरिक्त 1916 में अमेरिका मनोवैज्ञानिक टर्मेन ने बिने के बुद्धि परीक्षण को अपने देश की परिस्थितियों के अनुकूल बनाकर इसका प्रकाशन किया। यह परीक्षण स्टेनफोर्ड-बिने परीक्षण कहलाता है। चूंकि इस परीक्षण का संशोधन स्टेनफोर्ड विश्वविद्यालय के प्रोफेसर टर्मेन ने किया। इस आधार पर इस परीक्षण को ‘स्टेनफोर्ड-बिने परीक्षण’ कहा गया। 1937 में प्रो॰ एम.एम. मेरिल के सहयोग से 1916 के स्टेनफोर्ड बिने परीक्षण में संशोधन करके इसमें कुछ अंकगणित के प्रश्नों को भी रखा। 1960 में स्टेनफोर्ड विश्वविद्यालय से इस परीक्षण का वर्तमान संशोधन प्रकाशित किया गया।

Answered by kshivaganesh2579
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Answer:

व्यक्ति केवल शारीरिक गुणों से ही एक दूसरे से भिन्न नहीं होते बल्कि मानसिक एवं बौद्धिक गुणों से भी एक दूसरे से भिन्न होते हैं। ये भिन्नताऐं जन्मजात भी होती हैं। कुछ व्यक्ति जन्म से ही प्रखर बुद्धि के तो कुछ मन्द बुद्धि व्यवहार वाले होते हैं।

आजकल बुद्धि को बुद्धि लब्धि के रूप में मापते हैं जो एक संख्यात्मक मान है। बुद्धि परीक्षण का आशय उन परीक्षणों से है जो बुद्धि-लब्धि के रूप में केवल एक संख्या के माध्यम से व्यक्ति के सामान्य बौद्धिक एवं उसमें विद्यमान विभिन्न विशिष्ट योग्यताओं के सम्बंध को इंगित करता है। कौन व्यक्ति कितना बुद्धिमान है, यह जानने के लिए मनोवैज्ञानिकों ने काफी प्रयत्न किए। बुद्धि को मापने के लिए मनोवैज्ञानिकों ने मानसिक आयु (MA) और शारीरिक आयु (C.A.) कारक प्रस्तुत किये हैं और इनके आधार पर व्यक्ति की वास्तविक बुद्धि-लब्धि ज्ञात की जाती है।

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