History, asked by heavenangel12, 1 day ago

1. निम्नलिखित पर टिप्पणी लिखें-
(क) ज्युसेपे मेत्सिनी
(ख) काउंट कैमिलो दे कावूर
(ग) यूनानी स्वतंत्रता युद्ध
(घ) फ्रैंकफर्ट संसद
(ङ) राष्ट्रवादी संघर्षों में महिलाओं की भूमिका​

Answers

Answered by Abhijiii
5

Answer:

लिखें-

(क) ज्युसेपे मेत्सिनी

(ख) काउंट कैमिलो दे कावूर

(ग) यूनानी स्वतंत्रता

Answered by AnjanaUmmareddy
6

Answer:

1. ज्युसेपे मेत्सिनी एक इतालवी क्रांतिकारी थे। उनका जन्म 1807 में हुआ था। वह कार्बोनारी के सेक्रेट सोसायटी के सदस्य बन गये थे। जब वह 24 वर्ष के थे तभी उनको 1931 लिगुरिया में क्रांति की कोशिश के आरोप में देशनिकाला दे दिया गया था। उसके बाद उन्होंने दो और गुप्त सोसायटी की स्थापना की; पहले मार्सेई में यंग इटली के नाम से और फिर बाद में बर्न में यंग यूरोप के नाम से। मेत्सिनी का मानना था कि यह भगवान की मर्जी थी कि राष्ट्र ही मनुष्यों की प्राकृतिक इकाई थी। इसलिए इटली को छोटे छोटे राज्यों के पैबंद की बजाय एक एकीकृत गणराज्य बनाना जरूरी था। मेत्सिनी का अनुसरण करते हुए जर्मनी, स्विट्जरलैंड और पोलैंड में कई गुप्त संगठन बनाये गये। रुढ़िवादी लोग मेत्सिनी से डरते थे।

2. इटली के एकीकरण में काउंट कैमिली दे कावूर एक अग्रणी माने जाते हैं। वह पिडमॉंट सार्डीनिया के प्राइम मिनिस्टर थे। वह न तो कोई क्रांतिकारी थे और न ही लोकतांत्रिक्। वह इटली के कई अन्य अभिजात वर्ग के लोगों की तरह धनी और सुशिक्षित थे। इतालवी भाषा के मुकाबले उनकी भी पकड़ फ्रेंच भाषा पर अधिक थी। उन्होंने फ्रांस के साथ एक कूटनीतिक गठबंधन किया और उसकी वजह से 1859 में ऑस्ट्रिया की सेना को हराने में सफल हुए थे। इस लड़ाई में नियमित सेना के अलावा ज्युसेपे गैरीबाल्डी के नेतृत्व में कई स्वयंसेवकों ने भी हिस्सा लिया था। 1860 में इन्होने दक्षिण इटली और दो सिसिली के राज पर धावा बोल दिया। वे स्थानीय किसानों का समर्थन जीत गये और इस तरह से स्पैनिश शासकों को उखाड़ फेकने में सफल हो गये। 1861 में विक्टर एमानुयेल को एकीकृत इटली का राजा घोषित किया गया। कावूर उस एकीकृत इटली के प्राइम मिनिस्टर बन गये।

3. ग्रीस की आजादी की लड़ाई ने पूरे यूरोप के पढ़े लिखे वर्ग में राष्ट्रवाद की भावना को और मजबूत कर दिया। ग्रीस की आजादी का संघर्ष 1821 में शुरु हुआ था। ग्रीस के राष्ट्रवादियों को ग्रीस के ऐसे लोगों से भारी समर्थन मिला जिन्हे देशनिकाला दे दिया गया था। इसके अलावा उन्हें पश्चिमी यूरोप के अधिकाँश लोगों से भी समर्थन मिला जो प्राचीन ग्रीक संस्कृति का सम्मान करते थे। मुस्लिम साम्राज्य के विरोध करने वाले इस संघर्ष का समर्थन बढ़ाने के लिए कवियों और कलाकारों ने भी जन भावना को इसके पक्ष में लाने की भरपूर कोशिश की। यहाँ पर यह बताना जरूरी है कि ग्रीस उस समय ऑटोमन साम्राज्य का एक हिस्सा हुआ करता था। आखिरकार 1832 में कॉन्स्टैंटिनोपल की ट्रीटी के अनुसार ग्रीस को एक स्वतंत्र देश की मान्यता दे दी गई।

4. जर्मनी में ऐसे कई राजनैतिक गठबंधन थे जिनके सदस्य मध्यम वर्गीय पेशेवर, व्यापारी और धनी कलाकार हुआ करते थे। वे फ्रैंकफर्ट शहर में एकत्रित हुए और एक सकल जर्मन एसेंबली के लिए वोट करने का फैसला किया। 18 मई 1848 को 831 चुने हुए प्रतिनिधियों ने जश्न मनाते हुए एक जुलूस निकाला और फ्रैंकफर्ट पार्लियामेंट को चल पड़े जिसका आयोजन सेंट पॉल के चर्च में किया गया था। उन्होंने एक जर्मन राष्ट्र का संविधान तैयार किया। उस राष्ट्र की कमान कोई राजपरिवार का आदमी करता जो पार्लियामेंट को जवाब देने के लिए उत्तरदायी होता। इन शर्तों पर प्रसिया के राजा फ्रेडरिक विलहेम (चतुर्थ) को वहाँ का शासन सौंपने की पेशकश की गई। लेकिन उसने इस अनुरोध को ठुकरा दिया और उस चुनी हुई संसद का विरोध करने के लिए अन्य राजाओं से हाथ मिला लिया।

5. उदारवादी आंदोलन में महिलाओं ने भी भारी संख्या में हिस्सा लिया। इसके बावजूद, एसेंबली के चुनाव में उन्हें मताधिकार से मरहूम किया गया। जब सेंट पॉल के चर्च में फ्रैंकफर्ट पार्लियामेंट बुलाई गई तो महिलाओं को केवल दर्शक दीर्घा में बैठने की अनुमति मिली।

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