1.
नारी इतिहास की प्रासगिकता के सम्बन्ध में सक्षिप्त विवरण दीजिए।
2.'ग्राम वार्ता प्रकाशिका' एक असाधारण पत्रिका थी, कथन का आलोचनातक वर्णन कीजिए।
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सदियों से नारी को एक वस्तु तथा पुरुष की संपत्ति समझा जाता रहा है। पुरुष नारी को पीट सकता है, उसके दिल और शरीर के साथ खेल सकता है, उसके मनोबल को तोड़कर रख सकता है, साथ ही उसकी जान भी ले सकता है। मानो कि उसे नारी के साथ यह सब करने का अघोषित अधिकार मिला हुआ है। मगर यह भी सच है कि अनेक नारियों ने हर प्रकार की विपरीत और कठिन परिस्थितियों का डटकर सामना करते हुए उन पर विजय प्राप्त की और इतिहास में अपना नाम अमर कर दिया। आज की बदली हुई तथा अपेक्षया अनुकूल परिस्थितियों में नारियां स्वयं को बदलने और पुरुष-प्रधान समाज द्वारा रचित बेड़ियों से स्वयं को आजाद करवाने हेतु कृतसंकल्प हैं। अब प्रश्न यह है कि नारी कितना बदले और क्यों? इसी बात की विवेचना हम इस निबंध में करेंगे।
नारी जाति का इतिहास और उसमें देखे गए बदलाव :
1. वैदिक काल : वैदिक काल की नारियों ने पुरुषों के समकक्ष स्थिति का आनंद लिया। वैदिक काल की महिलाएं शिक्षित होती थीं। उनका विवाह परिपक्वता की वय में ही होता था तथा उन्हें अपने वर को चुनने की आजादी होती थी।
2. मध्यकाल : मध्यकाल में स्त्रियों की स्थिति में गिरावट आई। बाल विवाह, पुनर्विवाह पर रोक, बहुविवाह, राजपूत महिलाओं द्वारा जौहर, देवदासी प्रथा जैसी कुरीतियों के माध्यम से नारी जाति का शोषण आरंभ हो गया। नारियों को पर्दे के पीछे कैद कर दिया गया। इसके बावजूद अनेक नारियों ने संघर्ष करते हुए राजनीति, साहित्य, शिक्षा और धर्म के क्षेत्र में विशिष्ट उपलब्धियां अर्जित कर सम्मान पाया। रजिया सुल्तान, गोंड रानी दुर्गावती, रानी नूरजहां, शिवाजी की माता जीजाबाई जैसी महिलाओं ने नारी जाति को गौरव प्रदान किया। मीराबाई ने भक्ति रस की धारा बहाई और वे इतिहास की एक किंवदंती बन गईं।
3. अंग्रेजी राज : अंग्रेजी राज में नारियों की स्थिति में धीमी गति से सुधार आना आरंभ हुआ। नारियों को शिक्षा पाने का अवसर मिला। राजा राममोहन राय ने सती प्रथा के उन्मूलन तो ईश्वरचंद्र विद्यासागर ने विधवा विवाह के पक्ष में बड़ा योगदान दिया। रानी लक्ष्मीबाई ने अंग्रेजों के विरुद्ध लड़ाई लड़कर उनके छक्के छुड़ा दिए। आजादी की लड़ाई में अनेक