History, asked by rajthedark, 9 months ago

1. नियम कितने हैं और कौन-कौन से हैं?
2. शौच नामक नियम का क्या अभिप्राय है?
3. सन्तोष नामक नियम का अर्थ तथा इसके पालन करने के
बताइए?
___4. तप की व्याख्या कीजिए।
5. स्वाध्याय के दो अर्थ बताइए।
6. ईश्वरभक्ति आपके अपने कर्म से कैसे होती है?​

Answers

Answered by Anonymous
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Answer

आष्टांग योग के दूसरे अंग नियम भी पाँच प्रकार के होते हैं : (1)शौच, (2) संतोष, (3)तप, (4)स्वाध्याय और (5)ईश्वर प्राणिधान।

शौच मतलब स्वच्छता शारिरीक और मानसिक पवित्रता को शौच कहते हैं ।जिवन को सुखी स्वस्थ तथा आनन्दमय

संतोष नामक नियम का अर्थ तथा इसके पालन करने के लाभ बताइए ... संतोष की सिद्धि के लिए  और निराश करने वाली स्थितियों से बचने का परामर्श दिया गया है

तप से शरीर कुंदन बनता है और ईश्वर प्राणिधान अर्थात ईश्वर में ... स्वाध्याय : स्वाध्याय का अर्थ है स्वयं का अध्ययन करना। आप स्वयं के ज्ञान, कर्म और व्यवहार की समीक्षा करते हुए पढ़ें वह सब कुछ जिससे आपके आर्थिक, सामाजिक जीवन को तो लाभ मिलता

Answered by mukeshsharma05315
13

Explanation:

Answer

आष्टांग योग के दूसरे अंग नियम भी पाँच प्रकार के होते हैं : (1)शौच, (2) संतोष, (3)तप, (4)स्वाध्याय और (5)ईश्वर प्राणिधान।

शौच मतलब स्वच्छता शारिरीक और मानसिक पवित्रता को शौच कहते हैं ।जिवन को सुखी स्वस्थ तथा आनन्दमय

संतोष नामक नियम का अर्थ तथा इसके पालन करने के लाभ बताइए ... संतोष की सिद्धि के लिए  और निराश करने वाली स्थितियों से बचने का परामर्श दिया गया है

तप से शरीर कुंदन बनता है और ईश्वर प्राणिधान अर्थात ईश्वर में ... स्वाध्याय : स्वाध्याय का अर्थ है स्वयं का अध्ययन करना। आप स्वयं के ज्ञान, कर्म और व्यवहार की समीक्षा करते हुए पढ़ें वह सब कुछ जिससे आपके आर्थिक, सामाजिक जीवन को तो लाभ मिलता

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