1. नरस्याभरणं रूपं रूपस्याभरणं गुणः।
गुणस्याभरणं ज्ञानं ज्ञानस्याभरणं क्षमा
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नरस्याभरणं रूपं रूपस्याभरणं गुणः।
गुणस्याभरणं ज्ञानं ज्ञानस्याभरणं क्षमा।।
भावार्थ ⁝ मनुष्य का आभूषण उसका रूप होता है। रूप का आभूषण उसका गुण होता है। गुण का आभूषण का ज्ञान होता है और ज्ञान का आभूषण क्षमा होता है।
व्याख्या ⦂ कहने का तात्पर्य यह है कि मनुष्य का आभूषण रूप तो माना जाता है, लेकिन वही रूप सुंदर होता है जो गुणवान हो। बिना गुण के रूप का कोई अर्थ नहीं है। गुण भी वह श्रेष्ठ होता है, जो सद्गुण हो, जो ज्ञान से युक्त हो। सच्चा ज्ञानी वही है जिसमें क्षमा करने की सामर्थ्य हो।
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