1. और भी दूँ
किसीवे
का
अपने देश के प्रति प्रेम और समर्पण की भावना होना मनुष्य का स्वाभाविक गुण है। प्रस्तुत कविता में कवि देश के लिए
अपना सर्वस्व अर्पण करने की अभिलाषा रखता है और उसे स्वीकार करने के लिए मातृभूमि से आग्रह करता है।
ध्यापक
बात पत
से चच
बताएँ
ठोत
यप
मन समर्पित, तन समर्पित,
और यह जीवन समर्पित।
चाहता हूँ देश की धरती, तुझे कुछ और भी ढूँ।
माँ तुम्हारा ऋण बहुत है, मैं अकिंचन,
किंतु इतना कर रहा, फिर भी निवेदन।
में लाऊँ सजाकर भाल जब भी,
थाल
कर दया स्वीकार लेना वह समर्पण।
गान अर्पित, प्राण अर्पित
रक्त का कण-कण समर्पित।
चाहता हूँ देश की धरती, तुझे कुछ और भी ढूँ।
माँज दो तलवार को, लाओ न देरी,
बाँध दो कसकर, कमर पर ढाल मेरी,
भाल पर मल दो, चरण की धूल थोड़ी,
शीश पर आशीष की छाया घनेरी,
स्वप्न अर्पित, प्रश्न अर्पित,
आयु का क्षण-क्षण समर्पित।
चाहता हूँ देश की धरती, तुझे कुछ और भी दूँ।
तोड़ता हूँ मोह का बंधन, क्षमा दो,
I
गाँव मेरे, द्वार घर-आँगन क्षमा दो,
आज सीधे हाथ में तलवार दे दो,
अत और बाएँ हाथ में ध्वज को थमा दो।
ये सुमन लो, यह चमन लो,
बा नीड़ का तृण-तृण समर्पित,
17 चाहता हूँ देश की धरती, तुझे कुछ और भी दूँ।
-रामावतार त्यागी
धोई
9
- नई उड़ान-8
Answers
Answered by
0
Answer:
............................
Similar questions