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'औरै रस औरै रीति, औरै राग, औरै रंग, औरै तन, औरै मन, औरै बन वै गए,
इस काव्य-पंक्ति में 'औरै' पद की बार-बार आवृत्ति क्यों हुई है?
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पद्माकर ने अपने कवित्त में 'औरे' शब्द की आवृत्ति की है। इसकी बार-बार आवृत्ति ने उनके कवित्त में विशिष्टता के गुण का समावेश किया है। इसके अर्थ से वसंत ऋतु के सौंदर्य को और अधिक प्रभावी रूप से व्यक्त किया जा सका है। प्रकृति तथा लोगों में वसंत ऋतु के आने पर मन में जो चमत्कारी बदलाव हुआ है, इस शब्द के माध्यम से उसे दिखाने में कवि सफल हो पाए हैं। इस शब्द से पता चलता है कि अभी जो प्राकृतिक सुंदरता थी उसमें और भी वृद्धि हुई है। भवरों के समूह का बाग में बढ़ जाना और उनके द्वारा निकाली गई ध्वनि में व्याप्त नयापन आना वसंत के आने का संदेश देता है। यह शब्द हर बार पद के सौंदर्य को बढ़ाता है।
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