History, asked by uday7716, 10 months ago

1. प्राचीन भारतीय इतिहास लेखन में साहित्यिक स्रोतों का उपयोग करते समयकिस प्रकार की समस्याओं का सामना किया गया? सोदाहरण चर्चा कीजिए।​

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Answered by RonakMangal
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Answer:

प्राचीन भारत का इतिहास लिखने में अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है क्योंकि हमारे इतिहास के स्त्रोतों में भौतिक घटनाओं के लेखे-जोखे का महत्त्व अलग से नहीं पहचाना गया है। प्राचीन भारत के साहित्य में आख्यान, धर्मशास्त्र, अर्थशास्त्र एवं वंश-विस्तार आदि अनेक विषयों का समावेश होता है। भारतीय दृष्टिकोण हमेशा से आध्यात्मिक रहा है। फिर भी हमारे पास इतिहास जानने के पर्याप्त साधन हैं। हमारे पास विश्व का सबसे विशाल साहित्य है जो हमारी सांस्कृतिक धरोहर है। परवर्तीकाल में हमारी बहुत-सी साहित्यिक सामग्री आक्रमणकारियों द्वारा नष्ट कर दी गई थी।

भारतीय इतिहास की सामग्री का इतना बाहुल्य है कि उस अथाह सामग्री-सागर में प्रक्षिप्तांशों, प्रतिवादों तथा अत्युक्तियों का अभाव नहीं है। उन्हें इतिहास का मूलाधार तथा इतिहास जानने के साधनों का माध्यम बना कर जीवन-पर्यन्त कोई भी अन्वेषण कर सकता है। कुछ काव्यात्मक, किन्तु यथार्थ रूप में प्राचीन काल की लिखित सामग्रियों की अथाह सिन्धु और ऐतिहासिक घटनाओं की मणियों से उपमा दी जा सकती है। समुद्र में प्रत्येक स्थान पर मणियाँ नहीं हैं और सभी मणियाँ मूल्यवान भी नहीं हैं। ठीक इसी प्रकार प्राचीन भारतीय ग्रन्थों में प्राचीन इतिहास निहित है। प्राचीन भारतीय कलाकारों की कृतियाँ भी कम नहीं, जिनसे हमारे प्राचीन इतिहास का बोध हो सके। मूर्तिकला, चित्रकला, भवन-निर्माण–कला तथा अन्य ललित कलाओं के उत्कृष्ट उदाहरण आज भी अपनी भग्नावस्था में हमारी प्राचीन सभ्यता एवं संस्कृति की याद दिलाते हैं।

किसी भी देश के इतिहास के केवल दो साधन होते हैं-पहला साहित्यकारों की कृतियाँ तथा दूसरा विभिन्न कलाकारों की कृतियाँ भारतीय इतिहास के साधनों को भी इन्हीं दो भागों में विभाजित किया जा सकता है- साहित्यिक तथा पुरातात्त्विक।

साहित्यिक सामग्री को सुविधा के लिए इस प्रकार विभाजित किया गया है-

धार्मिक साहित्य तथा

धर्मनिरपेक्ष साहित्य

धार्मिक साहित्य भी दो प्रकार का है-

ब्राह्मण ग्रंथ तथा

अब्राह्मण ग्रन्थ (बौद्ध तथा जैन ग्रन्थ)

ब्राह्मण ग्रन्थों को भी श्रुति तथा स्मृति, दो भागों में विभाजित किया गया है। श्रुति के अन्तर्गत चारों वेद, ब्राह्मण तथा उपनिषदों की गणना की जाती है और स्मृति में दो महाकाव्य रामायण एवं महाभारत, पुराण तथा स्मृतियाँ आती हैं। इसी प्रकार, धर्मनिरपेक्ष साहित्य पाँच प्रकार का है–

ऐतिहासिक

अर्द्ध-ऐतिहासिक

विदेशी विवरण

जीवनियाँ तथा

कल्पना-प्रधान एवं गल्प साहित्य (विशुद्ध साहित्य)

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