1. 'पूस की रात' कहानी की कथा तत्वों के आधार पर समीक्षा करते हुए कहानी का उद्देश्य स्पष्ट कीजिए।
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Answer:
प्रेमचंद हिंदी जगत के कथा सम्राट माने जाते हैं. आपने 1916-17 से कहानी लेखन के क्षेत्र में युगांतकारी परिवर्तन किया. इनके पूर्व रहस्य, रोमांच और रोमांस की कहानियाँ लिखी जाती थीं, किन्तु प्रेमचंद मील के पत्थर साबित हुए उन्होंने कलात्मक कहा-नियाँ लिखकर हिंदी कहानी को स्थापित ही नहीं किया, अपितु भावी पीढ़ी को दिशा निर्देश भी दिया हैं. उनकी कहानियों में सा-माजिक परिवेश और चरित्र चित्रण की जीवंतता को महत्वपूर्ण स्थान दिया गया हैं.
तभी तो प्रेमचंद कथा साहित्य के पात्र पुस्तक बंद कर देने पर भी “दिल की किताब” में खुले रहते हैं. इतना ही नहीं प्रेमचंद ने सशक्त, सजीव एवं सरल तथा स्वाभाविक भाषा हिंदी को प्रदान की. उनकी कहानियों की संख्या लगभग 300 है, जो आज मान सरोवर भाग 1- 8 तक पुस्तकों के रूप में संग्रहित हैं. इनके कथा साहित्य को तीन कालों में विभाजित किया जा सकता है प्रथम वर्णनात्मक, द्वितीय विकास और प्रौढ़काल जिसमें कहानीकार का झुकाव आदर्श से यथार्थ की ओर गया था, तृतीय पूर्ण उत्कर्ष काल की कहानियाँ.
Given: पूस की रात' कहानी की कथा तत्वों के आधार पर समीक्षा करते हुए कहानी का उद्देश्य
Answer : 'पूस की रात ' प्रेमचंद्र जी द्वारा दिल को छू जाने वाली इस कहानी से यह उद्देश्य है कि - कहानी में कृषक जीवन की दुर्बलता और सबलता की झाँकी दिखाना है । कृषक यानी किसान एक एक दृष्टि से सबल होता है । वह कडी मेहनत करता है। पैसा-पैसा काँट-छाँटकर बचा रखता है। फिर हर प्रकार के कष्ट सहन करता है । जाडे में ठिठुरता है, जमिंदार की गाली सुनता है, फिर भी काम करता जाता है। यही उसकी सबलता है।
वह दुर्बल है, क्यों कि उसमें जमिंदार के अन्याय के विरुद्ध खडा होने की हिम्मत नहीं है । परिस्थितियाँ इसके लिए जिम्मेदार हैं । हल्कू ने अपनी मेहनत की कमाई जमिंदार को दी और खुद पूस की रात में ठण्ड से ठिठुरने लगा । यही उसकी कमजोरी है। परिस्थितियों की दबाव के कारण नील गायों से अपनी फसल की रक्षा भी न कर सका । अतः कहानी कार ने किसान की विवशता के लिए जिम्मेदारी शक्तियों के प्रति व्यंग्य किया है।
Explanation :
पूस की रात कहानी का सारांश कहानी पूस की रात में हल्कू के माध्यम से कहानीकार ने भारतीय किसान की लाचारी का यथार्थ चित्रण किया है। बहुत साल पहले की बात है। जब उत्तर भारत के किसी एक गाँव में हल्कू नामक एक गरीब किसान अपनी पत्नी के साथ रहता था। किसी की जमीन में खेती करता था। पर आमदानी कुछ भी नहीं थी । उसकी पत्नी खेती करना छोडकर और कहीं मजदूरी करने कहती थी।
हल्कू के लगान के तीर पर दूसरों की खेती थी। खेत के मालिक का बकाया था। हल्कू ने अपनी पत्नी से तीन रुपए माँगे। पत्नी ने देने से इनकार किया, ये तीन रुपिए जाडे की रातों से बचने के लिए, कंबल खरीदने के लिये जमा करके रखे थे। मालिक के तगादे और गालियों से डरकर उसने वे तीन रुपिए निकलकर दे दिए। जमिंदार रुपिए लेकर चला गया। पूस मास आ गया। अंधेरी रात थी। कड़ाके की सर्दी थी। हल्कू अपने खेत के एक किनारे ऊख के पत्तों की छतरी के नीचे बाँस के खटोले पर पड़ा था।
अपनी पुरानी चादर ओडे ठिठुर रहा था । खाट के नीचे उसका
पालतू कुत्ता जबरा पडा कुँ-कूँ कर रहा था । वह भी ठण्ड से
ठिठुर रहा था । हल्कू को उसके हालत पर तरस आ रहा था ।
उसने जबरा से कहा- 'तू अब ठंड खा, मैं क्या करुँ ? यहाँ
आने की क्या जरुरत थी?' हल्कू बहुत देर तक कुत्ते से
बातें करता रहा । जब ठंड के कारण उसे नींद नहीं आई, तब
कुत्ते को अपने गोद में सुला लिया। उसके शरीर के गर्मी
हल्कू को सुख मिला ।
कुछ घण्टे बीत गये । कोई आहट पाकर जबरा उठा और भौंकने लगा । उसे अपने कर्तव्य का मान था । हल्कू के खेत के समीप ही आमों का बाग था। बाग में पत्तियों का ढेर किया, पास के अरहर के खेत में जाकर कई पौधे उखाड के लाया । उसे सुलगाया और अपने खेत में आकर वहाँ के पत्तियों को भी सुलगाया । हल्कू और कुत्ते दोनों आग तापने लगे। ठंड की असीम शक्ति पर विजय पाकर वह विजय गर्व को ह्रदय में छिपा न सकता था ।
वह कंबल ओढकर सो जाता है । उसी समय नजदीक में आहट पाकर जबरा भौंकने लगा। कई जानवारों का एक झुण्ड खेत में आया था । शायद नील गायों का झुण्ड था । उनके कूदने-दौडने की आवजें साफ कान में आ रही थी । फिर ऐसा मालूम हुआ कि वे खेत में चर रही हैं । जबरा तो भौंकता रहा । फिर भी हल्कू को उठने का मन नहीं हुआ। जबरा तो भौंकता था। नील गायें खेत का सफाया किये डालती थी । और हल्कू गर्म राख के पास शांत बैठा हुआ था और धीरे-धीरे चादर ओढकर सो गया ।
उदर नील गायों ने रात भर चरकर खेती की सारी फसल को बरबाद किया था । सबेरे उसकी नींद खुली। मुन्नी ने उससे कहा -... तुम यहाँ आकर रम गये। और उधर सारा खेत सत्य नाश हो गया ।...' दोनों खेत के पास गये । मुन्नी ने उदास होकर कहा- अब मजूरी करके पेट पालना पडेगा । हल्कू ने कहा- 'रात की ठण्ड में यहाँ सोना तो न पडेगा ।" उसने यह बात बडी प्रसन्नता से कही, उसे ऐसी खेती करने से मजूरी करना बहुत हद तक आरामदायक है । मजूरी करने में झंझट तो नहीं हैं ।
#SPJ2