1.पाठ के लेखक कौन है?
2.धूल किसे कहते है?
3.गोधूलि की बेला का क्या अर्थ है? लेखक ने क्यों
कहा कि शहरों में गोधुलि कहाँ?
4.हीरा वही घन चोट न टूटे का क्या अर्थ है?
5.धूल के बिना किसी शिशु की कल्पना क्यों नहीं
की जा सकती?
6.अखाड़े की मिट्टी की क्या विशेषता होती है?
7.धन्य धन्य वे नर मैले करत गात लगाए धुरी ऐसे
लरिकन को पंक्ति का अर्थ लिखिए।
8.धूल पाठ का मूल भाव लिखिए।
Answers
1. पाठ के लेखक कौन है?
➲ पाठ के लेखक का नाम ‘रामविलास शर्मा’ है।
2. धूल किसे कहते है?
➲ मिट्टी की जो आभा है। मिट्टी कि जो आत्मा है, वही धूल है। मिट्टी के कणों को धूल कहते हैं जो मिट्टी से ही बनते हैं।
3. गोधूलि की बेला का क्या अर्थ है? लेखक ने क्यों कहा कि शहरों में गोधुलि कहाँ?
➲ गाँव में जब वाले अपनी गाय को चराकर शाम को वापस घर लौटते हैं, तो गाँव के कच्चे मार्ग पर गाय के चलने से, गाय के पैरों से उड़ने वाली धूल अस्त होते हुए सूर्य की किरणों में सुनहरी बन जाती है, इसी उड़ती हुई धूल को गोधूलि कहते हैं। लेखक ने शहरों में गोधूलि कहाँ, इसलिये कहा है क्योंकि शहर की पक्की सड़क पर मिट्टी कहाँ जिससे मिट्टी उड़े।
4. हीरा वही घन चोट न टूटे का क्या अर्थ है?
➲ हीरा वही जो घन चोट ना टूटे का अर्थ है, जो सच्चा और असली हीरा होता है, वह हथौड़े की चोट से आसानी से नहीं टूटताष उसी तरह गाँव के लोग भी दृढ़ और मजबूत होते हैं। वह किसी भी तरह की विपत्ति व संकट से नहीं घबराते।
5. धूल के बिना किसी शिशु की कल्पना क्यों नहीं की जा सकती?
➲ धूल के बिना किसी शिशु की कल्पना इसलिए नहीं की जा सकती, क्योंकि वातावरण में जो धूल उड़ती है। उसकी आवाज से ही शिशु के मुख पर चमक आती है। हर ग्रामीण शिशु इस सुख का अनुभव करता है। इसलिए धूल के बिना किसी शिशु की कल्पना नहीं की जा सकती।
6. अखाड़े की मिट्टी की क्या विशेषता होती है?
➲ अखाड़े की मिट्टी तेल और मिट्टी से सिंचाई हुई होती है और पसीने से लथपथ शरीर पर वह फिसलती है, तो ऐसा लगता है कि मानो आदमी कुआँ खोदकर निकला हो।
7. धन्य धन्य वे नर मैले करत गात लगाए धुरी ऐसे लरिकन को पंक्ति का अर्थ लिखिए।
➲ इन पंक्तियों का यह अर्थ है कि लेखक उस व्यक्ति को धन्य तो कहा है, लेकिन अपनी निराश भी व्यक्त की है, वह व्यक्ति जो धूल से सने हुए शिशु को गोद में उठाने के लिए अपने कपड़ों के गंदे होने से चिंतित होता है, ऐसे व्यक्ति ही धूल भरे हीरों के सच्चे प्रेमी नही हैं।
8. धूल पाठ का मूल भाव लिखिए।
➲ ‘धूल’ पाठ का मूल भाव ग्रामीण सभ्यता और संस्कृति के महत्व को स्पष्ट करना है। गाँव की धूल में जो धरतीपुत्र पढ़कर बढ़े होते हैं, वे किसी भी हीरे से कम नहीं हैं। वे ग्रामीण अर्थव्यवस्था की धुरी हैं, सुदृढ़ हैं, मजबूत हैं, जीवट इच्छाशक्ति के हैं। शहर का बनावटी जीवन तो आज के सौंदर्य के समान नकली और नश्वर है। ग्रामीण प्राकृतिक जीवन की असली जीवन है, यह धूल मिट्टी की महिमा है, मिट्टी की आभा है, जो ग्रामीण जीवन की आत्मा है।
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