Geography, asked by rabindarshaw49, 7 months ago

1. पृथ्वी के अनुसूर्य एवं अपसौर स्थिति का चित्र अंकित करते हुए
चिन्हित करें।
2. भारत के स्थानीय समय के महत्व पर विचार कीजिए।
3. वायुभार पर जलवाष्प की भूमिका का वर्णन करो।
4. एशिया की जलवायु को किस प्रकार अक्षांश की स्थिति तथा. समुद्र से दूरी प्रभावित करती है ?​

Answers

Answered by ahmedps
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Explanation:

पृथ्वी पर प्रतिदिन का अनुभव हमें सुझाता है कि हमारा ग्रह उल्लेखनीय विविधता लिए है। पृथ्वी में शामिल पदार्थों का फैलाव जल और बर्फ से लेकर वायुमंडलीय गैसों तथा कई चट्टानों और खनिजों के भंडार के रूप में देखा जा सकता है। फिर भी हमारे द्वारा अधिग्रहित जैवमंडल की पतली परत पूरी पृथ्वी का परिचायक नहीं है। पृथ्वी की सतह से कुछ दस एक किलोमीटर नीचे तक हमारा ग्रह कम विविधता लिए है, इस क्षेत्र में केवल चट्टानें, खनिज और धातुओं के यौगिक हैं।”

अर्थ, जेम्स एफ. लुहर (एडीटर इन चीफ) डॉलिंग किंडरसली लिमिटेड, लंदन, 2003।

वैज्ञानिकों ने पृथ्वी के आंतरिक भाग से संबंधित कुछ सिद्धांतों को व्यवस्थित किया है, जिनकी सहायता से वे पृथ्वी के आंतरिक भाग में उपस्थित माहौल को कृत्रिम रूप से बनाने का प्रयत्न करते हैं। वे ऐसा इसलिए करते हैं ताकि पृथ्वी के आंतरिक भाग की गतिविधियों को समझ सकें। इस प्रकार के कुछ अध्ययनों के आधार पर वैज्ञानिकों ने पृथ्वी के आंतरिक क्षेत्र के बारे में एक प्रयोगात्मक (टेन्टेटिव) चित्र विकसित किया है। जैसे-जैसे पृथ्वी के आंतरिक भाग से संबंधित नई-नई सूचनाएं प्राप्त होती जाती है पुराने विचारों में सुधार होता जाता है।पृथ्वी की सतह के विभिन्न पहलुओं के बारे में हमनें बहुत सारी जानकारी संग्रहित कर ली है। ये जानकारियाँ हमारे प्रत्यक्ष अवलोकन से ही संभव हुई है। हम पृथ्वी की सतह का अन्वेषण और सर्वेक्षण करने के साथ नक्शा भी बना सकते हैं। वैज्ञानिकों ने चट्टानों का विश्लेषण कर लिया है, किंतु पृथ्वी के भीतरी (आंतरिक) भाग के संबंध में प्रत्यक्ष अवलोकन नहीं किए जा सका है। हम पृथ्वी के भीतरी भाग को कुछ किलोमीटर से अधिक नहीं भेद सके हैं। पृथ्वी की भीतरी पर्त छह हजार किलोमीटर से भी अधिक गहरी है। भीतरी पर्त की गहराई को देखते हुए हमारे द्वारा भेदी गई गहराई विशेष महत्व नहीं रखती है। जब प्रत्यक्ष अवलोकन संभव नहीं होता, तब भूवैज्ञानिक (पृथ्वी का अध्ययन करने वाले वैज्ञानिक) विभिन्न अप्रत्यक्ष प्रमाणों पर निर्भर होते हैं। भूकंपों और ज्वालामुखियों से पृथ्वी के आंतरिक भाग के बारे में जानकारी प्राप्त की जा सकती है। अक्सर भूकंप पृथ्वी के आंतरिक भाग में दबे रहस्यों को उजागर करते हैं और ज्वालामुखी पृथ्वी की गहराई में स्थित तत्वों को धरती की सतह की ओर उगल देते हैं।

भूकंपी तरंगों की संचरण गति में पृथ्वी की विभिन्न पर्तों के अनुसार परिवर्तन होता है। इस प्रकार पृथ्वी की विभिन्न पर्तों से गुजरने वाली भूकंपी तरंगों का गति का मापन, वैज्ञानिकों को पृथ्वी के आंतरिक भाग का अध्ययन करने में सहायक होता है। वैज्ञानिकों द्वारा पृथ्वी के घूर्णन और पृथ्वी के विभिन्न भागों के गुरुत्व में अंतर का भी अध्ययन किया जाता है। वे चांद (पृथ्वी का एकमात्र प्राकृतिक उपग्रह) के आकर्षण प्रभाव से सागरों में होने वाली ज्वार नामक परिघटना का भी अवलोकन करते हैं।

वैज्ञानिकों ने पृथ्वी के आंतरिक भाग से संबंधित कुछ सिद्धांतों को व्यवस्थित किया है, जिनकी सहायता से वे पृथ्वी के आंतरिक भाग में उपस्थित माहौल को कृत्रिम रूप से बनाने का प्रयत्न करते हैं। वे ऐसा इसलिए करते हैं ताकि पृथ्वी के आंतरिक भाग की गतिविधियों को समझ सकें। इस प्रकार के कुछ अध्ययनों के आधार पर वैज्ञानिकों ने पृथ्वी के आंतरिक क्षेत्र के बारे में एक प्रयोगात्मक (टेन्टेटिव) चित्र विकसित किया है। जैसे-जैसे पृथ्वी के आंतरिक भाग से संबंधित नई-नई सूचनाएं प्राप्त होती जाती है पुराने विचारों में सुधार होता जाता है। कुछ परिणामों की सत्यता को लेकर कोई संदेह नहीं है। उदाहरण के लिए पृथ्वी की पर्तदार संरचना और पृथ्वी की आंतरिक क्रोड का ठोस होना स्वीकार कर लिया गया है। किंतु अभी भी कुछ सिद्धांत पूर्णतः स्वीकारे नहीं गए हैं और ये नए ज्ञान द्वारा सत्यापन की प्रक्रिया से गुजर रहे हैं।

Answered by ramjanamray31
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Answer:

र्र्त्र्ंगेय्र्फीय्स्क्षवोईत्व्स

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