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राष्ट्रीय एकीकरण की दो विशेषताओं का वर्णन करें।
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जब किसी समाज में सारे व्यक्ति किसी निर्दिष्ट भौगोलिक सीमा के अन्दर अपने पारस्परिक भेद-भावों को भुलाकर सामूहीकरण की भावना से प्रेरित होते हुए एकता के सूत्र बन्ध जाते हैं तो उसे राष्ट्र के नाम से पुकारा जाता है। राष्ट्रवादीयों का मत है – “ व्यक्ति राष्ट्र के लिए है राष्ट्र व्यक्ति के लिए नहीं “ इस दृष्टि से प्रत्येक व्यक्ति अपने राष्ट्र का अभिन्न अंग होता है। राष्ट्र से अलग होकर उसका कोई अस्तित्व नहीं होता है। अत: प्रत्येक व्यक्ति का कर्त्तव्य है कि वह राष्ट्र की दृढ़ता तथा अखंडता को बनाये रखने में पूर्ण सहयोग प्रदान करे एवं राष्ट्र को शक्तिशाली बनाने के लिए राष्ट्रीयता की भावना परम आवश्यक है। वस्तुस्थिति यह है कि राष्ट्रीयता एक ऐसा भाव अथवा शक्ति है जो व्यक्तियों को अपने व्यक्तिगत हितो को त्याग कर राष्ट्र कल्याण के लिए प्रेरित करती है। इस भावना की विकसित हो जाने से राष्ट्र की सभी छोटी तथा बड़ी सामाजिक इकाइयां अपनी संकुचती सीमा के उपर उठकर अपने आपको समस्त राष्ट्र का अंग समझने लगती है। स्मरण रहे कि राष्ट्रीयता तथा देशप्रेम का प्राय: एक ही अर्थ लगा लिया जाता है। यह उचित नहीं है। देश प्रेम की भावना तो पर्चिन काल से ही पाई जाती है परन्तु रस्थ्रियता की भावना का जन्म केवल 18 वीं शताबदी में फ़्रांस की महान क्रांति के पश्चात ही हुआ है। देश-प्रेम का अर्थ उस स्थान से प्रेम रखना है जहाँ व्यक्ति जन्म लेता है। इसके विपरीत राष्ट्रीयता एक उग्र रूप का सामाजिक संगठन है जो एकता के सूत्र में बन्धकर सरकार की नीति को प्रसारित करता है। यही नहीं, राष्ट्रीयता का अर्थ केवल राज्य के प्रति अपार भक्ति ही नहीं अपितु इसका अभिप्राय राज्य तथा उसके धर्म, भाषा, इतिहास तथा संस्कृति में भी पूर्ण श्रद्दधा रखना है। संक्षेप में राष्ट्रीयता का सार – राष्ट्र के प्रति आपार भक्ति, आज्ञा पालान तथा कर्तव्यपरायणता एवं सेवा है। ब्रबेकर ने राष्ट्रीयता की व्याख्या करते हुए लिखा है – “ राष्ट्रीयता शब्द की प्रसिद्धि पुनर्जागरण तथा विशेष रूप से फ़्रांस की क्रांति के पश्चात हुई है। यह साधारण रूप से देश-प्रेम की अपेक्षा देश-भक्ति से अधिक क्षेत्र की ओर संकेत करती है। राष्ट्रीयता में स्थान के सम्बन्ध के अतिरिक्त प्रजाति, भाषा तथा संस्कृति एवं परमपराओं के भी सम्बन्ध आ जाते हैं।”
राष्ट्रीयता तथा शिक्षा
प्रत्येक राष्ट्र की उन्नति अथवा अवनित इस बात पर निर्भर करती है की उसके नागरिकों में राष्ट्रीयता की भावना किस सीमा तक विकसित हुई है। यदि नागरिक राष्ट्रीयता की भावना से ओत-प्रोत है तो राष्ट्र उन्नति के शिखर पर चढ़ता रहेगा अन्यथा उसे एक दिन रसातल को जाना होगा। कहने का तात्पर्य यह है कि राष्ट्र को सबल तथा सफल बनाने के लिये नागरिकों में राष्ट्रीयता की बहावना विकसित करना परम आवश्यक है। धयान देने की बात है कि राष्ट्रीयता की भावना को विकसित करने के लिए शिक्षा की आवशयकता है। इसीलिए प्रत्येक राष्ट्र अपने आस्तित्व बनाये रखने के लिए अपने नागरिकों में राष्ट्रीयता की भावना में विकास हेतु शिक्षा को अपना मुख्य सधान बना लेता है। स्पार्टा, जर्मनी, इटली , जापान तथा रूस एवं चीन की शिक्षा इस सम्बन्ध में ज्वलंत उदहारण है। इतिहास इस बात का साक्षी है कि प्राचीन युग में स्पार्टा तथा अन्धुनिक युग में नाजी जर्मनी एवं फासिस्ट इटली में शिक्षा द्वारा ही वहाँ के नागरिकों में राष्ट्रीयता का विकास किया गया तथा आज भी रूस तथा चीन के बालकों में प्रराम्भिक कक्षाओं से साम्यवादी भावना का विकास किया जाता है। चीन के बालकों में प्रारंभिक कक्षाओं में साम्यवादी भावना का विकास किया जाता है। कहने का तात्पर्य यह है कि तानाशाही, समाजवादी एवं जनतंत्रीय सभी प्रकार के राष्ट्र अपनी-अपनी व्यवस्था को बनाये रखने के लिए अपने-अपने नागरिकों में शिक्षा के द्वारा राष्ट्रीयता की भावना को विकसति करते हैं।