1. "सामाजिक जीवन में क्रोध की जरूरत बराबर पड़ती है ।यदि क्रोध न हो तो मनुष्य दूसरे के द्वारा पहुंचाए जाने वाले बहुत से कष्टों की चिर- निवृत्ति का उपाय ही न कर सके।"
आचार्य रामचंद्र शुक्ल जी का यह कथन इस बात की पुष्टि करता है कि क्रोध हमेशा नकारात्मक भाव के लिए नहीं होता बल्कि कभी-कभी सकारात्मक भी होता हैl इसके पक्ष या विपक्ष में अपना मत प्रकट कीजिये।
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Answer:paksh - jaisa ki ram chandra shukla ne kaha ki krodh humare jeevan upyogi mai is baat se sahmat hu kyu ki agr hume krodh naa aaye to hume dusre log kamjor samjhane lagenge kabhi kabhi apni upyogita ko darshane ke liye krodh krna bhi aawashyak h .
Vipaksh - krodh humare liye jyadatar hanikarak kyu ki krodh me bahut si galti kr baithate h hum jiska aabhas hame baad me hota h kabhi kabhi hum kisi or ka gussa kisi or pr utar dete h jisase us insan se humara rishta kharab ho jata h.
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हां, सामाजिक जीवन में क्रोध की जरूरत बराबर पड़ती हैं क्योंकि कभी कभी जो बात प्यार से नहीं समझा पाते हैं वो क्रोध से ही समझा पाते हैं
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