1. सब धरती कागद करूँ, लेखनि सब बनराय। सात समुंद की मसि करूँ, गुरु गुन लिखा न जाय।।
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Answer:
“ सब धरती कागद करूँ , लेखनी सब बनराय ।
सात समुद्र की मसि करूँ , गुरु गुण लिखा न जाय ।”
भावार्थ :- यदि सारी धरती को कागज़ मान लिया जाए ,
सारे जंगल - वनों की लकड़ी की कलम बना ली जाए तथा सातों समुद्र स्याही हो जाएँ तो भी हमारे द्वारा कभी हमारे गुरु के गुण नहीं लिखे जा सकते है ।हमारे जीवन मे हमारे गुरु की महिमा सदैव अनंत होती है अर्ची, गुरु का ज्ञान हमारे लिए सदैव असीम और अनमोल होता है ।
इस जगत मे बहुत कम ऐसे गुरू हुए है जिनको उनकी अपनी सफलता के साथ साथ ही उनके अपने शिष्य की सफलता से पहचान मिली हो ऐसे ही भाग्यशाली गुरू रहे है “रमाकान्त आचरेकर” जिन्हे पूरी दुनिया सचिन तेंदुलकर के क्रिकेट कोच “ क्रिकेट गुरू ” के रूप मे जानती है और इसी रूप मे ही सदैव याद भी रखना चाहती है !
ईश्वर के साम्राज्य मे पहुँचने पर आज गुरू आचरेकर का स्वागत नाराण ने निश्चित तौर पर यही कह कर किया होगा “ क्रिकेट के भगवान सचिन तेंदुलकर के गुरू रमाकान्त आचरेकर जी आईए आपका स्वागत है !!”
दिवंगत आचरेकर जी को मेरी विनम्र श्रद्धांजलि !!
प्रस्तुत प्रश्नानंकित दोहा कबीर दास के दोहे से संकलित है। जिसमें उन्होंने सतगुरु के बारे में वर्णन किया है। सतगुरु की महिमा का बखान करते हुए कबीरदास कहते हैं कि यदि पूरी पृथ्वी को कागज बना दूं, सारे जंगल की लकड़ियों को लेखनी बना दूं, सातों समुद्र को स्याही बना दूं, फिर भी गुरु के गुण लिखना संभव नहीं है।
Explanation:
कबीर दास गुरु की महानता का वर्णन करते हुए कहते हैं कि, गुरु सर्वश्रेष्ठ और महान होते हैं, सतगुरु का मिलना, अर्थात् जो सच्चे गुरु होते हैं उनका मिलना बहुत ही कठिन है और उनका जीवन में क्या महत्व है। गुरु के बारे में उनकी सोच बहुत ही दूर तक है, गुरु के बिना मोक्ष नहीं मिल सकता, गुरु के बिना सत्य और असत्य की पहचान असंभव है, गुरु के बिना मन के दोष अर्थात् मन के विकारों को मिटाना असंभव है। जो मनुष्य गुरु की आज्ञा नहीं मानता। वह कुमार्ग की ओर चला जाता है। यहां गुरु अर्थात् सतगुरु की बात हो रही है, जो व्यक्ति सतगुरु के शरण छोड़कर उनके बताए गए मार्ग पर न चलकर अन्य बातों में विश्वास रखता है, उसे जीवन में दुखों का सामना करना पड़ता है।
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