1. सत्संग का क्या अभिप्राय है?
2. संग का व्यक्ति के जीवन पर क्या प्रभाव पड़ता है?
3. जल की बूंद के उदाहरण द्वारा नीच, मध्यम और उत्तम संगति
का परिणाम प्रकट करें।
4. कबीर के अनुसार सत्संग का प्रभाव प्रकट करें।
5. गोस्वामी तुलसीदासजी सत्संग के बारे में क्या कहते हैं?
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Explanation:
1. सत्संग से तात्पर्य अच्छी व नेक संगति अर्थात् साथ से है।
2. जो व्यक्ति जैसी संगति में रहता है उसका चरित्र वैसा ही बनता जाता है। यदि हम साधुजनों की संगति करेंगे तो हमारा मन निर्मल रहेगा और हम ईश्वर की शरण में रहेंगे। और यदि हम बुरी संगति में रहेंगे तो हमारा चरित्र और व्यवहार भी वैसा ही बन जायेगा।
3. जल की बूंद कीचड़ में गिरे तो वह भी कीचड़ (नीच) बन जाती है, उसका स्वंय का अस्तित्व समाप्त हो जाता है, पर यदि जल की बूंदें ईश्वर के चरणों में गिरें तो अमृत (उच्च) बन जाता है और प्रसाद स्वरूप माना जाता है। इसी तरह वही जल जब तन पर पड़ता है तो हमारा तन शुद्ध (मध्यम) हो जाता है। इसे मध्यम इसलिये माना जाता है क्योंकि तन के साथ-साथ मन का शुद्ध होना भी आवश्यक होता है।
4. कबीर के अनुसार, गुरु की संगति से व्यक्ति का मन शांत रहता है और उसे सही मार्ग मिल जाता है। जबकि बुरी संगति से उसका विनाश हो जाता है। जो अभिमानी होते हैं उन पर सत्संग का कोई प्रभाव नहीं पड़ता।
5. तुलसीदास के अनुसार, प्रभु से प्रथम मुलाकात सत्संग से ही होती है। सत्संग के बिना विवेक नहीं होता और राम की कृपा के बिना वह सत्संग सहज में मिलता नहीं। सत्संगति आनंद और कल्याण की जड़ है। सत्संग की सिद्धि ही फल है और सब साधन तो फूल है।