1 शिक्षा को एक् प्यवसाय में बदल दिया गया है, इस में
होने वाली हानियों का वरुन कीजिए
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एक समय था जब हमारे विद्यालय के मुख्य द्वार पर लिखा होता था “शिक्षार्थ आइये” “सेवार्थ जाइए”, आज के तथाकथित विद्यालयों में इस पंक्ति के साथ साथ यह भाव भी लुप्त हो गया है। बिना सरकारी मान्यता और संसाधन के ये विद्यालय अप्रशिक्षित अद्यापकों को लेकर किराये के भवनों में कक्षाएं चला रहे हैं और फिर भी ये विद्यालय विद्यार्थिओं के सर्वागीण विकास का दावा करते हैं। आज आवश्यकता है यह जानने की कि इन विद्यालयों से हमारी शिक्षा की गुणवत्ता किस स्तर पर जा रही है। क्या इन सभी के अंतर्मन में आज अचानक से सेवा का भाव इतना प्रचंड हो गया है जो आज इन विद्यालयों ने विद्यार्थिओं का भविष्य बनाने का संकल्प लिया है या फिर आज सरकारी विद्यालयों की कमी हो गयी है. संभवतया नहीं, आज जितना लाभ शिक्षा के क्षेत्र में है उतना कहीं और देखने को नहीं मिलता है और यही कारण है कि गैरसरकारी विद्यालयों में धन कमाने की होड़ लगी है. और बात जहाँ धनोपार्जन की आती है वहां पर शिक्षा को ताक पर रख दिया जाता है। आज व्यवसाय की शिक्षा देते देते विद्यालय शिक्षा का व्यवसाय करने लगे है और शिक्षा विभाग से संबंधित अधिकारियों की छत्रछाया में से इनका व्यवसाय खूब फल फूल रहा है।
इसमें होने वाली हानियां कुछ इस प्रकार है -
मैडम जी आती है और छड़ी से बच्चे को मार जाती है और bonus भरपूर मात्रा में मिल जाती है