1. श्रीकृष्ण ने राजसूय यज्ञ के विषय में युधिष्ठिर को क्या उत्तर दिया?
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श्रीकृष्ण बोले- “ मगधदेश के राजा जरासंध ने सब राजाओं को जीतकर उन्हें अपने अधीन कर रखा है । सभी उसका लोहा मान चुके है और उसके नाम से डरते हैं , यहाँ तक कि शिशुपाल जैसे शक्ति - संपन्न राजा भी उसकी अधीनता स्वीकार कर चुके है और उसकी छत्रछाया में रहना पसंद करते है । अत : जरासंध के रहते हुए और कौन सम्राट - षद प्राप्त कर सकता है ? जब महाराज उग्रसेन का नासमझा बेटा कंस जरासंध की बेटी से ब्याह करके उसका साथी बन गया था , तब मैने और मेरे बंधुओं ने जरासंध के विरुद्ध युद्ध किया था । तीन बरस तक हम उसकी सेनाओं के साथ लड़ते रहे , पर आखिर हार गए । हमें मथुरा छोड़कर दूर पश्चिम द्वारका में जाकर नगर और दुर्ग बनाकर रहना पड़ा । आपके साम्राज्याधीश होने में होने में दुर्योधन और कर्ण को आपत्ति न भी हो , फिर भी जरासंध से इसकी आशा रखना बेकार है। बगैर युद्ध के जरासंध इस बात को नहीं मान सकता है । जरासंध ने आज तक पराजय का नाम तक नहीं जाना है । ऐसे अजेय पराक्रमी राजा जरासंध जीते जी राजसूय यज्ञ नहीं कर सकेंगे । उसने जो राजे - महाराजे बंदीगृह में डाल रखे हैं , किसी - न - किसी उपाय से पहले उन्हें छुड़ाना होगा । जब ये हो जाएगा तभी राजसूय करना आपके लिए साध्य होगा ।
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