Hindi, asked by adithyansuresh3465, 5 months ago

1. दिए गए अनुछेद पढकर प्रश्नों का उत्तर लिखिए: (B MARKS )
बचपन का वह मिशन स्कूल मुझे अब तक स्मरण है, जहाँ प्रार्थना और पाठ्यक्रम की एकरसता से
मैं इतनी रुआंसी हो जाती थी कि प्रतिदिन घर लौटकर नींद से बेसुध होने तक सबेरे स्कूल न जाने
का बहाना सोचने से ही अवकाशन मिलता था।
उन दिनों मेरी ईर्ष्या का मुख्य विषय नौकरानी की लड़की थी, जिसे चौका-बर्तन करके घर में रहने
को तो मिल जाता था। जिस कठोर ईश्वर ने मेरे भाग्य में नित्य स्कूल जाना तिख दिया था, वह माँ के
ठाकुर जी में से कोई है या मिशन की सिस्टर का ईसू, यह निक्षय न कर सकने के कारण मेरा मन
विचित्र दुविधा में पड़ा रहता था। पदि वह माँ के ठाकुरजी में से है, तो आरती पूजा से जी चुराते ही
कुद्ध होकर मेरे घर रहने का समय और कम कर देगा और यदि स्कूल में है, तो बहाना बनाकर न
जाने से पढ़ाई के घंटे और बढ़ा देगा, इसी उधेड़-बुन में मेरा मन पूजा, आरती, प्रार्थना सब में
भटकता ही रहता था।
इस अन्धकार में प्रकाश की एक रेखा भी थी। स्कूल निकट होने के कारण बूढी कल्लू की माँ मुझे
किताबों के साथ वहाँ पहुँचा भी आती थी और ले भी आती थी और इस आवागमन के बीच में, कभी
सड़क पर लड़ते हुए कुत्ते, कभी उनके भटकते हुए पिल्ले, कभी किसी कोने में बैठकर पंजों से मुँह
धोती हुई बिल्ली, कभी किसी घर के बरामदे में लटकते हुए पिंजड़े में मनुष्य की स्वर-साधना करता
हुआ गंगाराम, कभी बत्तख और तीतरों के झुण्ड, कभी तमाशा दिखलानेवाले के टोपी लगाए हुए
बंदर, ओढ़नी ओढ़े हुए बंदरिया, नाचनेवाला रीछ आदि स्कूल की एकरसता दूर करते ही रहते थे।
हमारे ऊँचे घर से कुछ ही हटकर, एक ओर रंगीन, सफेद, रेशमी और सूती कपड़ों से और दूसरी
ओर चमचमाते हुए पीतल के बर्तनों से सजी हुई एक नीची-सी दुकान में जो वृद्ध सेठजी बैठे रहते थे,
उन्हें तो मैंने कभी ठीक से देखा ही नहीं; परन्तु उस घर के पीछे वाले द्वार पर पड़े हुए पुराने टाट के
परदे के छेद से जो आँखें प्राय: आते-जाते देखती रहती थीं, उनके प्रति मेरा मन एक कुतूहल कभी
कभी मन में आता था कि परदे के भीतर झाँक कर देखें पर कल्लू की माँ मेरे लिये उस जंतु विशेष से
कम नहीं थी, जिसकी बात कह कह कर बच्चों को डराया जाता है । उसका कहना न मानने से वह
नहलाते समय मेरे हाल ही में छिदे कान की लौ दुखा सकती थी, चोटी बाँधते समय बालों को खूब
खीच सकती थी, कपड़े पहनाते समय तंग गले वाले फ्राक को आँखों पर अटका सकती थी, घर में
और स्कूल में मेरी बहुत-सी झूठी-सच्ची शिकायत कर सकती थी---सारांश यह कि उसके पास
प्रतिशोध लेने के बहुत से साधन थे।
1. हमारी कथावाचक को स्कूल अच्छा क्यों नहीं लगता? हर दिन स्कूल से घर लौटकर वह क्या
करती है।
2. कथावाचक की राय में, किस के कारण से उसे हर दिन स्कूल जाना पड़ता है।
3. घर ज्यादा रहने के लिए वह अपनी माँ के ठाकुर जी के लिये क्या करती है।​

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Answered by thakurguddi923
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