1. दोहा-
पै फीकी लगै, बिन अवसर की बात। जैसे बसत युद्ध में, रस शृंगार न सुहात।।
2. दोहा-
अपनी पहुँचि बिचारि के, करतब करिए दौर। तेते पाँव पसारिए, जेती लांबी सौर।।
3. दोहा-
कारज धीरे होतु है, काहे होत अधीर।
समय पाय तरुवर फलै, केतक सींचौ नीर।।
-वृन्दजी के दोहे
इसका भावार्थ लिखिए-
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