1. दौलत पाय न कीजिए, सपनेहु अभिमान
दौलत पाय न कीजिए, सपनेहु अभिमान।
चंचल जल दिन चारिको, ठाउं न रहत निदान॥
ठाउं न रहत निदान, जियत जग में जस लीजै।
मीठे बचन सुनाय, विनय सबही की कीजै॥
कह 'गिरिधर कविराय अरे यह सब घट तौलत।
पाहुन निसिदिन चारि, रहत सबही के दौलत॥
(पाहुन=अतिथि,मेहमान)
2. गुन के गाहक सहस नर, बिन गुन लहै न कोय
गुन के गाहक सहस नर, बिन गुन लहै न कोय ।
जैसे कागा-कोक
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संदर्भ : यह कवि गिरिधर द्वारा रचित की गई कुंडलियां हैं, इन कुंडलियों के माध्यम से कवि ने नैतिक शिक्षा देने की चेष्टा की है।
दौलत पाय न कीजिए, सपनेहु अभिमान।
चंचल जल दिन चारिको, ठाउं न रहत निदान॥
ठाउं न रहत निदान, जियत जग में जस लीजै।
मीठे बचन सुनाय, विनय सबही की कीजै॥
कह ‘गिरिधर कविराय अरे यह सब घट तौलत।
पाहुन निसिदिन चारि, रहत सबही के दौलत॥
भावार्थ : कवि गिरिधर कहते हैं कि खाली धन-दौलत पाने के लिए ही कार्य मत करो और धन दौलत मिल भी जाए तो उसका अभिमान कभी मत करो। जिस तरह बहता हुआ जल चंचल होता है, वह कभी एक जगह स्थिर होकर नहीं ठहरता, उसी तरह आने वाला धन भी चंचल होता है, वह भी एक के पास हमेशा के लिये नही टिकता। यह दौलत आनी है, फिर जानी है, इसलिए जीवन में धन-दौलत कमाने के साथ-साथ भगवान का भी नाम लो। अच्छे कार्य करो, मधुर वचन बोलो और सभी से प्रेम करो। कवि के कहना का तात्पर्य यह है कि धन-दौलत एक अस्थिर वस्तु है, लेकिन हमारा जो व्यवहार है वह अमूल्य है, अटूट है, वही सच्ची दौलत है।
गुनके गाहक सहस नर, बिन गुन लहै न कोय ।
जैसे कागा-कोकिला, शब्द सुनै सब कोय ।
शब्द सुनै सब कोय, कोकिला सबे सुहावन ।
दोऊ को इक रंग, काग सब भये अपावन ॥
कह गिरिधर कविराय, सुनौ हो ठाकुर मन के ।
बिन गुन लहै न कोय, सहस नर गाहक गुनके ॥
भावार्थ : कवि गिरिधर कहते हैं की जो गुणी व्यक्ति होते हैं, उनकी पहचान लाखों की भीड़ में भी हो जाती है, और जिनमें गुण नहीं होते उनको कोई नहीं पूछता। जिस तरह कोयल और कौवे समान रंग रूप वाले होते हुए भी केवल अपने गुणों के आधार पर जाने जाते हैं। कोयल अपने मीठे स्वर के कारण सब लोगों को पसंद आती है, जबकि कौआ अपने कर्कश स्वर के कारण लोगों की निंदा का पात्र बनता है। इसी तरह गुणी व्यक्ति सबको पसंद आता है तो अवगुणी को कोई व्यक्ति को कोई नहीं पूछता।
Answer:
the first paragraph's answer you can find above thanks to bhatiamona and here is the second paragraph's