1.
दासता की शृंखलाओं से मुक्त आत्मनिर्भर मनुष्य कभी दूसरों का मुँह देखने वाला नहीं बनता।" इस पंक्ति का क्या भाव है।
परतंत्र व्यक्ति सदैव आत्मनिर्भर होता है।
आत्मनिर्भर व्यक्ति कभी परमुखापेक्षी नहीं होता है
स्वावलंबी व्यक्ति दासता की श्रृंखलाओं से जकड़ा होता है।
(iv) आत्मनिर्भर व्यक्ति दूसरों से अपेक्षा रखता है।
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aatmnirbhar vyakti kabhi parmukhapekshi nhi hota h
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M
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mukti mukti ka muktika pratidaan is fat ke aarambh ki do line dhyan se dekh kar likho
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