1. उपकारी नहीं चाहते , पाना प्रत्युपकार।
बादल को बदला भला क्या देता संसार।।
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अध्याय लोकोपकारिता उपकारी नहिं चाहते, पाना प्रत्युपकार । बादल को बदला भला, क्या देता संसार ॥ बहू प्रयत्न से जो जुड़ा, योग्य व्यक्ति के पास लोगों के उपकार हित, है वह सब धन-रास ॥ ... सामाजिक कर्तव्य का, जिन सज्जन को ज्ञान |उपकृति से नहिं चूकते, दारिदवश भी जान | उपकारी को है नहीं, दरिद्रता की सोच ।'
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बादल को बदला भला, क्या देता संसार ।। १।। दान-पुण्य-तप-कर्म भी करते हैं जो लोग।
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