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ऊधौ, तुम हौ अति बड़भागी।
अपरस रहत सनेह तगा ते, नाहिन मन अनुरागी।
पुरइनि पात रहत जल भीतर, ता रस देह न दागी।
ज्यौं जल माह तेल की गागरि, बूंद न ताकौं लागी।
प्रीति-नदी मैं पाउँ न बोस्यौ, दृष्टि न रूप परागी।
'सूरदास' अबला हम भोरी, गुर चाँटी ज्यौं पागी।।
इस पद में कवि ने किसका वर्णन किया है?
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इस पद में श्री कृष्ण के मित्र उद्धव का वर्णन किया गया है।
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इस पद में कवि सूरदास ने कृष्ण के संदेशवाहक उद्धव का वर्णन किया है
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