1.विरह का सर्प वियोगी की क्या दशा कर देता है? CLASS 10 KABIR-SAAKHI (HINDI)
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कबीर कहते है कि राम वियोगी के तन अर्थात शरीर को ये विरह रुपी सर्प जब व्याप्त कर लेता है तो उस वियोगी की दशा मारक दशा बन जाती हैं क्योंकि इस विरह रुपी भुजंग को मारने के लिए कोई -भी मंत्र नहीं चलता हैं अर्थात इस विषधर पर कोई - भी झाड-फूंक (उपचार या इलाज ) असर नहीं करता जिसके कारण मनुष्य मृतप्राय: अवस्था में चला जाता है और यदि जीने की अवस्था में रहा तो बावला अर्थात पागल हो जाता है |
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इस कविता का भाव है कि जिस व्यक्ति के हृदय में ईश्वर के प्रति प्रेम रुपी विरह का सर्प बस जाता है, उस पर कोई मंत्र असर नहीं करता है। अर्थात भगवान के विरह में कोई भी जीव सामान्य नहीं रहता है। उस पर किसी बात का कोई असर नहीं होता है।
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