1. विद्वान् सर्वत्र न् पूज्यते |
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स्वदेशे पूज्यते राजा विद्वान् सर्वत्र पूज्यते॥" जिसका अर्थ यह है कि एक राजा और एक ज्ञानी व्यक्ति की तुलना नही की जा सकती। राजा की शक्ति, उसका वर्चस्व केवल अपने निर्धारित सीमा क्षेत्र यानी अपने राज्य तक ही होती है।
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