1. वर दे ! कविता में कवि माँ वीणावादिनी से वरदान में क्या चाहता है ? लिखिए।
Answers
Explanation:
व्यर्थ प्रकृति के नियमों की यों दो न दुहाई,
होड़ न बाँधो तुम यों मुझसे।
जब मेरे जीवन का पहला पहर झुलसता था लपटों में,
तुम
बैठे थे बंद उशीर पटों से घिरकर।
मैं जब वर्षा की बाढ़ों में डूब-डूब कर उतराया था
तुम हँसते थे वाटर-प्रूफ़ कवच को ओढ़े।
और शीत के पाले में जब गलकर मेरी देह जम गई
तब बिजली के हीटर से
तुम सेंक रहे थे अपना तन-मन
जिसने झेला नहीं, खेल क्या उसने खेला?
जो कष्टों से भाग, दूर हो गया सहज जीवन के क्रम से,(घ) ग्रीष्म ऋतु
जीवन का हर दर्द सहे जो
स्वीकारो हर चोट समय की।
निम्नलिखित में से निर्देशानुसार विकल्पों का चयन कीजिए :
(क) प्रथम चार पंक्तियों में किस ऋतु की ओर संकेत है ?
(1) वर्षा ऋतु
(ii) वसंत ऋतु
(iii) शरद् ऋतु
(ख) जब कवि बाढ़ में डूबता-उतराता था तब श्रोता क्या कर रहा था?
(i) घर में बैठा था
(ii) वाटर प्रूफ कवच को ओढ़े हुए था
(i) बिजली का हीटर सेंक रहा था
(iv) कुछ नहीं कर रहा था
(ग) जीवन के खेल को कौन खेलता है?
(i) जो कष्टों को अपने ऊपर झेलता है
(ii) जो कष्टों से दूर भागता है
(ii) जो बचकर चलता है
(iv) जो सोता रहता है
(घ) आनंद का तिलक पीड़ा के माथे पर चढ़ने का आशय है-
(i) पीड़ा झेलने पर ही आनंद की अनुभूति होती है (ii) पीड़ा तिलक चढ़ाती है
(iii) तिलक माथे पर ही लगता है
(iv) पीड़ा झेलो, तिलक लगाओ
(ङ) इस कविता में कवि की प्रेरणा है
(1) खुली हवा में घूमो
(ii) समय की हर चोट को सहन करो
(ii) सुखपूर्वक जीवन व्यतीत करो
(iv) आँधी-तूफान झेलो