10. आदिवासियों के क्षेत्रवादी आन्दोलन का क्या परिणाम हुआ?
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इस समय आदिवासियों के आंदोलन का स्वरूप प्रायः पहले की व्यवस्था को पुनर्स्थापित करना था, इन आंदोलनों का उन लोगों ने नेतृत्व प्रदान किया जिनकी विशेष स्थिति को ब्रिटिश उपनिवेशवाद के द्वारा क्षति पहुंची थी।
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आदिवासी आंदोलन काश्तकारी नियम को निरस्त कराने में सफल रहे एवम पुराने व्यवस्था को वापस लाने में भी सफल रहे।
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- आदिवासियों की जमीनों पर जमींदारों का कोई अधिकार नहीं था , पर ब्रिटिश शासन ने आदिवासियों की भूमि व्यवस्था को ही बदल दी।
- अंग्रेजों की वन नीति में जंगल से प्राप्त वस्तुओं के इस्तेमाल के अधिकारों में कमी कर दी गई।
- 19वीं शताब्दी के मध्य तक जंगल पर कई पुस्तों से अधिकार चला आ रहा था जिसमे काश्तकारी व्यवस्था से ठेकेदारों का घुसपैठ हो गया।
- बाजारी अर्थव्यवस्था के कारण व्यापारी वर्ग भी बढ़ गए इस अधिनियम में आदिवासियों को लगान का भुगतान नगद राशि में करना पड़ता था नगद राशि के अभाव के कारण आदिवासी महाजनों से कर्ज लेने लगे आत्मनिर्भर आदिवासी अर्थव्यवस्था बाजार नीति में बदल गया शिक्षा के अभाव के कारण नए कानून व्यवस्था का लाभ से वंचित रहने लगे जमींदार आदिवासियों से असंवैधानिक लगान वसूलने लगे और वे उनको जमीन से बेदखल करने लगे चक्रवृद्धि ब्याज का उनको ज्ञान नहीं था जिससे उनका शोषण होने लगा।
- शहरीकरण के कारण संचार व्यवस्था ,लंबी सड़कों का जाल, रेल पथ सेवा का विकास के कारण जंगल की प्राकृतिक व अर्थव्यवस्था मृतप्राय सी हो गई, जिसका लाभ आदिवासियों को ना होकर बाहरी लोगों को होने लगा।
- जंगल से मुआवजा की राशि सरकार जो आदिवासियों के लिए निर्गत करती थी बीच के लोग उन तक पहुंचने नहीं देते थे ।
- इस प्रकार के शोषण के बाद आदिवासियों का आंदोलन प्रारंभ हो गया , उनके नेताओं ने जल , जमीन और जंगल बचाओ का नारा दिया एवं काश्तकारी नियम को निरस्त कराने में सफल रहे।
- आदिवासी आंदोलन के बाद आदिवासियों की शोषण बंद हो गई।
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