Hindi, asked by npradeepnetam, 3 days ago

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(क) “पेट की आग का शमन ईश्वर (राम) भक्ति का मेघ ही कर सकता है।'
तुलसी का यह काव्य-सत्य क्या इस समय का भी युग-सत्य है ? तर्कसंगत उत्तर
लिखिए।
(ख) अतिशय मोह भी क्या त्रास का कारक है ? माँ का दूध छूटने का कष्ट जैसे एक
जरूरी कष्ट है, वैसे ही कुछ और जरूरी कष्टों की सूची बनाकर लिखिए।​

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Answered by shishir303
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(क) “पेट की आग का शमन ईश्वर (राम) भक्ति का मेघ ही कर सकता है।'  तुलसी का यह काव्य-सत्य क्या इस समय का भी युग-सत्य है ? तर्कसंगत उत्तर  लिखिए।

✎... पेट की आग का शमन ईश्वर यानी राम भक्ति का मेघ ही कर सकता है। तुलसी का यह काव्यसत्य आज के समय का युगसत्य नहीं है भी और नहीं भी। इसका ये है क्योंकि आज वैसी भक्ति की भावना नहीं रह गई।

तुलसी ने श्रीराम को घनश्याम कहा है अर्थात यदि प्रभु की कृपा प्राप्त हो जाए तो पेट की आग का शमन होना कोई कठिन कार्य नहीं। तुलसी की दृष्टि में ईश्वर की भक्ति करना एक मेघ के समान है, जिससे कृपा रूपी जल बरस कर पेट रूपी आग को बुझा देता है। आज के युगसत्य के संदर्भ में यह बात में तो यह है उतनी प्रासंगिक नही है, क्योंकि केवल भक्ति करने से ही सब कुछ प्राप्त नहीं होता। भक्ति के साथ कर्म की भी आवश्यकता होती है। भक्ति के भरोसे बैठकर फल की प्राप्ति नहीं होती बल्कि भक्ति के साथ निरंतर प्रयास और कर्म करते रहने से ही सफलता प्राप्त होती है।

(ख) अतिशय मोह भी क्या त्रास का कारक है ? माँ का दूध छूटने का कष्ट जैसे एक  जरूरी कष्ट है, वैसे ही कुछ और जरूरी कष्टों की सूची बनाकर लिखिए।​

✎... अतिशय मोह त्रास का कारण बन सकता है, क्योंकि किसी भी चीज की अति हमेशा बुरी होती है। यह बात सर्व विदित है जब किसी व्यक्ति वस्तु के प्रति अधिक मोह हो जाता है और जब उसका साथ छूटता है तो बड़ा ही दुख होता है, इसलिए सांसारिक वस्तुओं के प्रति अतिशय मोह नहीं रखना चाहिए।

जिस प्रकार बच्चे का माँ के दूध के प्रति अतिशय मोह होता है और दूध छूटने पर उसे बड़ा कष्ट होता है, वैसे ही कुछ अन्य कष्ट इस प्रकार हैं...

  • जब हमारा कोई प्रियजन व्यक्ति हमें छोड़ कर चला जाता है तो हमें बेहद दुख होता है।
  • हम अपने स्कूल के दिनों में हमारे बेहद अच्छे अच्छे मित्र होते हैं, लेकिन स्कूल छोड़ते समय उन मित्रों का साथ टूटने पर बेहद दुख होता है ।
  • हमें कोई मनपसंद खाद्य पदार्थ खाने की बेहद इच्छा होती है, लेकिन वह मनपसंद खाद्य पदार्थ ना मिलने पर हमें बेहद दुख होता है।
  • कभी-कभी हमें कोई वस्तु बेहद प्रिय हो जाती है, लेकिन वो वस्तु न मिलने पर हमे बेहद दुख का अनुभव होता है।

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