Hindi, asked by Neerajn4549, 1 year ago

10 lines on myna in Hindi

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Answered by khanahmed
2
तुमने मैना चिड़िया के बारे में सुना ही होगा। यह देश के गिने-चुने परिचित पक्षियों में से एक है और देश के सभी भागों में पाई जाती है। मैना, कौए और गौरेया की तरह मनुष्यों से हिल-मिल कर रहती है। यह एशिया के कुछ देशों के अलावा कहीं नहीं दिखाई देती। मैना का अंग्रेजी नाम भी मैना है। मैना ज्यादातर गांव के मैदानों, खेतों, ताल-तलैयों के आसपास नजर आती है।

मैना खैरे रंग की चिड़िया होती है। इसका सिर, गर्दन, पूंछ व सीना काले रंग का होता है और इसकी पूंछ सफेद होती है। नर और मादा के रूप-रंग में कोई ज्यादा अंतर नहीं होता। यह दूसरे पक्षियों के घोंसलों में अपने अंडे देती है। इसके अंडों की संख्या चार या पांच होती है। इसके अंडे नीले रंग के होते हैं। मैना की अन्य प्रजातियां भी पाई जाती हैं, जिनमें गुलाबी मैना, तेलिया मैना अलबखा, पहाड़ी मैना और पवई मैना प्रमुख हैं।
देसी मैना सबसे ज्यादा जानी-पहचानी होती है, जो देश के सभी भागों में पाई जाती है। भोजन के मामले में यह सर्वभक्षी होती है, यानी सब कुछ खाती है। यह दाना चुगती है, कीड़े खाती है और कभी-कभी मरी हुई छिपकलियों और मरे हुए पक्षियों को अपना आहार बनाती है। जून-जुलाई के महीने में अंडे देती है। इसके घोंसले छतों, वृक्षों, कुओं और सुराखों में होते हैं और देखने में बेडौल होते हैं।

किलहटा मैना 11 इंच की होती है। खैरा रंग, सिर, गर्दन काले, पूंछ का सिरा सफेद, आंखों की पुतली भूरी और पैर पीले होते हैं। दरिया मैना, इसे गंगा मैना या चहीं भी कहते हैं। इसका सिर, गर्दन काली, शरीर का बाकी हिस्सा भूरा होता है। चोंच नारंगी रंग की और आंखों के चारों ओर का हिस्सा लाल होता है। नदी, तालाबों और कुओं के पास घोंसला बनाने के कारण इसका नाम दरिया मैना पड़ा है।

गुलाबी मैना देखने में काफी सुंदर होती है। इसके सिर और डैने तथा शरीर का शेष भाग गुलाबी होता है।
तेलिया मैना को तिलौरी भी कहा जाता है। इसे ठंड अधिक पसंद होती है। इसके शरीर पर बादामी रंग की धारियां होती हैं। महुए के फूलों का रस इन्हें काफी पसंद है। पहाड़ी मैना चकाचौंध में न रहकर जंगलों में वृक्षों पर रहती है। फल ही इसका मुख्य भोजन होता है। इसकी दुम और डैने, चोंच और पैर छोटे और मजबूत होते हैं। चोंच लाल, आंखें काली, पैर और सिर पीले रंग के होते हैं। यह बर्मा, थाईलैंड आदि देशों में भी पाई जाती है। इसकी बोली मीठी होती है, इसलिए इसे पिंजरे में रखना पसंद किया जाता है।

अलबखा मैना का शरीर काला होता है। इसकी आंख की पुतली और पैर पीले होते हैं। कीड़े के अलावा यह फल भी खाती है। इसका घोंसला घास-फूस का बना होता है। नवई मैना, जिसे ब्राह्मणी मैना भी कहते हैं, रूप-रंग में अलबखा की तरह होती है। यह भुने हुए आटे की गोलियां आसानी से खा सकती है। यह पेड़ों के सुराखों में घोंसला बनाती है और वहां अंडे देती है। मैनाओं की एक खास आदत होती है कि ये दूसरे पक्षियों के खाली घोंसले में घुस जाती हैं और इन्हें आसानी से पकड़ा जा सकता है।




Answered by pousalidolai59
7

Answer:

तुमने मैना चिड़िया के बारे में सुना ही होगा। यह देश के गिने-चुने परिचित पक्षियों में से एक है और देश के सभी भागों में पाई जाती है। मैना, कौए और गौरेया की तरह मनुष्यों से हिल-मिल कर रहती है। यह एशिया के कुछ देशों के अलावा कहीं नहीं दिखाई देती। मैना का अंग्रेजी नाम भी मैना है। मैना ज्यादातर गांव के मैदानों, खेतों, ताल-तलैयों के आसपास नजर आती है।

मैना खैरे रंग की चिड़िया होती है। इसका सिर, गर्दन, पूंछ व सीना काले रंग का होता है और इसकी पूंछ सफेद होती है। नर और मादा के रूप-रंग में कोई ज्यादा अंतर नहीं होता। यह दूसरे पक्षियों के घोंसलों में अपने अंडे देती है। इसके अंडों की संख्या चार या पांच होती है। इसके अंडे नीले रंग के होते हैं। मैना की अन्य प्रजातियां भी पाई जाती हैं, जिनमें गुलाबी मैना, तेलिया मैना अलबखा, पहाड़ी मैना और पवई मैना

प्रमुख हैं।

देसी मैना सबसे ज्यादा जानी-पहचानी होती है, जो देश के सभी भागों में पाई जाती है। भोजन के मामले में यह सर्वभक्षी होती है, यानी सब कुछ खाती है। यह दाना चुगती है, कीड़े खाती है और कभी-कभी मरी हुई छिपकलियों और मरे हुए पक्षियों को अपना आहार बनाती है। जून-जुलाई के महीने में अंडे देती है। इसके घोंसले छतों, वृक्षों, कुओं और सुराखों में होते हैं और देखने में बेडौल होते हैं।

किलहटा मैना 11 इंच की होती है। खैरा रंग, सिर, गर्दन काले, पूंछ का सिरा सफेद, आंखों की पुतली भूरी और पैर पीले होते हैं। दरिया मैना, इसे गंगा मैना या चहीं भी कहते हैं। इसका सिर, गर्दन काली, शरीर का बाकी हिस्सा भूरा होता है। चोंच नारंगी रंग की और आंखों के चारों ओर का हिस्सा लाल होता है। नदी, तालाबों और कुओं के पास घोंसला बनाने के कारण इसका नाम दरिया मैना पड़ा है। तेलिया मैना को तिलौरी भी कहा जाता है। इसे ठंड अधिक पसंद होती है। इसके शरीर पर बादामी रंग की धारियां होती हैं। महुए के फूलों का रस इन्हें काफी पसंद है। पहाड़ी मैना चकाचौंध में न रहकर जंगलों में वृक्षों पर रहती है। फल ही इसका मुख्य भोजन होता है। इसकी दुम और डैने, चोंच और पैर छोटे और मजबूत होते हैं। चोंच लाल, आंखें काली, पैर और सिर पीले रंग के होते हैं। यह बर्मा, थाईलैंड आदि देशों में भी पाई जाती है। इसकी बोली मीठी होती है, इसलिए इसे पिंजरे में रखना पसंद किया जाता है।

अलबखा मैना का शरीर काला होता है। इसकी आंख की पुतली और पैर पीले होते हैं। कीड़े के अलावा यह फल भी खाती है। इसका घोंसला घास-फूस का बना होता है। नवई मैना, जिसे ब्राह्मणी मैना भी कहते हैं, रूप-रंग में अलबखा की तरह होती है। यह भुने हुए आटे की गोलियां आसानी से खा सकती है। यह पेड़ों के सुराखों में घोंसला बनाती है और वहां अंडे देती है। मैनाओं की एक खास आदत होती है कि ये दूसरे पक्षियों के खाली घोंसले में घुस जाती हैं और इन्हें आसानी से पकड़ा जा सकता है।

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