Social Sciences, asked by taniyak2001, 5 months ago

10. मुद्रा की सट्टा मांग (speculative demand) और तरलता जाल (liquidity trap) की अवधारणा समझाएं।​

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Answered by Pachaureji1997
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Answer:

इस सिद्धान्त का प्रतिपादन प्रसिद्ध अर्थशास्त्री जे. एम. कीन्स (J. M. Keynes) ने 1936 में प्रकाशित अपनी पुस्तक ‘General Theory of Employment, Interest and Money’ में किया । कीन्स के अनुसार ब्याज दर पूर्णतः एक मौद्रिक घटना है । उनके अनुसार ब्याज की दर मुद्रा की पूर्ति एवं माँग की सापेक्षिक शक्तियों द्वारा निर्धारित होती है

कीन्स के अनुसार, ”ब्याज वह कीमत है जो कि धन की नकद रूप में रखने की इच्छा तथा प्राप्त नकदी की मात्रा में समानता स्थापित करती है ।”

कीन्स मुद्रा की माँग को तरलता पसन्दगी (Liquidity Preference) के सन्दर्भ में परिभाषित करते हैं । नकद मुद्रा की माँग को तरलता पसन्दगी कहा जाता है । मुद्रा को कई रूपों में रखा जा सकता है किन्तु विभिन्न रूपों में सबसे तरल रूप (Liquid Form) नकद मुद्रा है क्योंकि नकद मुद्रा को ही जब हम चाहें इच्छानुसार प्रयोग कर सकते हैं । इस प्रकार नकदी (Cash) को कीन्स ने तरलता (Liquidity) का नाम दिया ।

प्रतिष्ठित अर्थशास्त्री यह मानते थे कि मुद्रा केवल विनिमय माध्यम के रूप में कार्य करती है और एक निष्क्रिय वस्तु है । परन्तु कीन्स के अनुसार, मुद्रा विनिमय माध्यम के साथ-साथ मूल्य संचय (Store of Value) का भी कार्य करती है ।

मुद्रा में तरलता का गुण होने के कारण व्यक्ति मुद्रा का संचय करना चाहते हैं । व्यक्ति जब किसी दूसरे व्यक्ति को मुद्रा उधार देता है तो उसे तरलता का त्याग करना पड़ता है इसी त्याग के बदले व्यक्ति को जो पुरस्कार दिया जाता है वही ब्याज दर है ।

कीन्स के अनुसार, ”किसी निश्चित अवधि के लिए तरलता के त्याग का पुरस्कार ही ब्याज है ।”

कीन्स के अनुसार, मुद्रा की माँग तथा मुद्रा की पूर्ति की सापेक्षिक शक्तियों द्वारा ब्याज का निर्धारण होता है:

A. मुद्रा की माँग (Demand of Money):

कीन्स के अनुसार, मुद्रा की माँग का अभिप्राय मुद्रा की उस राशि से है जो लोग अपने पास तरल (अर्थात् नकद) रूप में रखना चाहते हैं । कीन्स के अनुसार, लोग मुद्रा को नकद या तरल रूप में रखने की माँग तीन उद्देश्यों से करते हैं ।

जो निम्नलिखित हैं:

1. सौदा उद्देश्य (Transactive Motive):

व्यक्तियों को आय एक निश्चित अवधि के बाद मिलती है जबकि व्यय करने की आवश्यकता दैनिक जीवन में प्रतिदिन पड़ती रहती है । इस प्रकार आय प्राप्त करने तथा व्यय करने के बीच एक अन्तर रहता है ।

दूसरे शब्दों में, दैनिक लेन-देन (अर्थात् क्रय-विक्रय) करने के लिए व्यक्तियों द्वारा नकद मुद्रा की कुछ मात्रा सदैव अपने पास रखी जाती है ताकि दैनिक आवश्यकता की पूर्ति हो सके । इस प्रकार एक अर्थव्यवस्था में सभी व्यक्ति, परिवार और फर्में दैनिक खर्चे के लिए जो मुद्रा की माँग करते हैं उसे सौदा उद्देश्य वाली माँग कहा जाता है ।

यह माँग निम्नलिखित तत्वों पर निर्भर करती हैं:

(i) आय तथा रोजगार का स्तर (Volume of Income and Employment):

देश में आय, उत्पादन एवं रोजगार का स्तर जितना अधिक होगा उतनी ही क्रय-विक्रय के निकट मुद्रा की माँग अधिक होगी । कीमतें तथा मजदूरी बढ़ जाने से भी नकदी की क्रय-विक्रय के लिए माँग बढ़ जाती है ।

(ii) आय प्राप्ति की आवृत्ति (Frequency of Income Payment):

नकदी की माँग आय के परिणाम पर ही निर्भर नहीं करती बल्कि इस बात पर भी निर्भर करती है कि आय कितने अन्तराल के बाद प्राप्त हो रही है । आय प्राप्ति की अवधि में वृद्धि के साथ सौदा उद्देश्य के लिए नकदी की माँग बढ़ जाती है

(iii) व्यय की अवधि (Span of Expenditure):

व्यय की अवधि भी नकदी की माँग को प्रभावित करती है । खर्चों का भुगतान जितनी लम्बी अवधि के बाद किया जायेगा उतनी ही दैनिक क्रय-विक्रय के लिए धन की माँग कम होगी ।

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