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निम्नलिखित गद्यांश की प्रसंग,संदर्भ व विशेष सहित व्याख्या कीजिए
क्षमा जहाँ से श्रीहत् हो जाती है, वहीं से क्रोध के सौंदर्य का आरम्भ होता है। शिशुपाल की बहुत-
सी बुराइयों तक जब श्रीकृष्ण की क्षमा पहुँच चुकी तब जाकर उसका लौकिक लावण्य फीका पड़ने
लगा और क्रोध की समीचीनता का सूत्रपात हुआ। अपने ही दु:ख पर उत्पन्न क्रोध में या तो हमें
तत्काल क्षमा का अवसर या अधिकार ही नहीं रहता अथवा वह अपना प्रभाव खो चुकी रहती है।"
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