Hindi, asked by Winner7083, 2 months ago

[10] निर्माण क्षेत्र के लिए रेत अनिवार्य सामग्री है। यह देश का एक फलता-फूलता उद्योग है, इसलिए रेत बाजार से गायब हो जाए यह तो कतई वाछित नहीं। लेकिन यह भी आवश्यक है कि रेत की आपूर्ति और नदियों के संरक्षण के बीच उचित तालमेल बने। नदियों में रेत आने की एक सीमा है। एक अनुमान के मुताबिक नदियाँ जिस रफ़्तार से रेत की पूर्ति करती हैं, उसकी तुलना में 40 गुणा अधिक रेत निकाले जाने के कारण पर्यावरण संबंधी समस्या पैदा होती है। रेत की नदियों में जलवाही स्तर कायम रखने और विभिन्न प्रजातियों के परिवास के रूप में अहम भूमिका है। उसके क्षरण से नदियों की जल धारण क्षमता कमजोर होती है, जिसका भीषण परिणाम उत्तराखंड में देखने को मिला। एक तरफ जहाँ तेज़ी से होते शहरीकरण की माँग है, वहीं नदियों की प्राकृतिक संरचना को बचाने की चुनौती है। इन परस्पर विरोधी तकाज़ों में संतुलन कैसे बने? एक सुझाव है कि तटीय विनियमन क्षेत्र की तर्ज पर सारे देश के लिए नदी विनियमित क्षेत्र का गठन किया जाए, जिससे नदियों के किनारे की गतिविधियों को नियंत्रित एवं नियमित किया जा सके। मुद्दे की बात यह है कि समाधान हेतु उचित कदम उठाए जाएँ।

[CBSE 2015]

प्रश्न- (क) रेत की आवश्यकता क्यों बढ़ रही है? (ख) रेत और नदी के तालमेल के लिए क्या आवश्यकता है? स्पष्ट कीजिए।

(ग) आज देश के सामने क्या चुनौती है?

(घ) इस समस्या से निपटने का सुझाव कहाँ तक उचित है? (ङ) उपसर्ग और प्रत्यय अलग कीजिए।

परिवास, शहरीकरण

(च) रेत नदी में क्या काम करता है? उसको निकालने के क्या परिणाम होते हैं?

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Answered by QianNiu
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[10] निर्माण क्षेत्र के लिए रेत अनिवार्य सामग्री है। यह देश का एक फलता-फूलता उद्योग है, इसलिए रेत बाजार से गायब हो जाए यह तो कतई वाछित नहीं। लेकिन यह भी आवश्यक है कि रेत की आपूर्ति और नदियों के संरक्षण के बीच उचित तालमेल बने। नदियों में रेत आने की एक सीमा है। एक अनुमान के मुताबिक नदियाँ जिस रफ़्तार से रेत की पूर्ति करती हैं, उसकी तुलना में 40 गुणा अधिक रेत निकाले जाने के कारण पर्यावरण संबंधी समस्या पैदा होती है। रेत की नदियों में जलवाही स्तर कायम रखने और विभिन्न प्रजातियों के परिवास के रूप में अहम भूमिका है। उसके क्षरण से नदियों की जल धारण क्षमता कमजोर होती है, जिसका भीषण परिणाम उत्तराखंड में देखने को मिला। एक तरफ जहाँ तेज़ी से होते शहरीकरण की माँग है, वहीं नदियों की प्राकृतिक संरचना को बचाने की चुनौती है। इन परस्पर विरोधी तकाज़ों में संतुलन कैसे बने? एक सुझाव है कि तटीय विनियमन क्षेत्र की तर्ज पर सारे देश के लिए नदी विनियमित क्षेत्र का गठन किया जाए, जिससे नदियों के किनारे की गतिविधियों को नियंत्रित एवं नियमित किया जा सके। मुद्दे की बात यह है कि समाधान हेतु उचित कदम उठाए जाएँ।

प्रश्न- (क) रेत की आवश्यकता क्यों बढ़ रही है?

(ख) रेत और नदी के तालमेल के लिए क्या आवश्यकता है? स्पष्ट कीजिए।

(ग) आज देश के सामने क्या चुनौती है?

(घ) इस समस्या से निपटने का सुझाव कहाँ तक उचित है?

(ङ) उपसर्ग और प्रत्यय अलग कीजिए।

परिवास, शहरीकरण

(च) रेत नदी में क्या काम करता है? उसको निकालने के क्या परिणाम होते हैं?

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उत्तर- (क) निर्माण कार्य इस देश में फलता-फूलता उद्योग है। जैसे-जैसे निर्माण कार्य और गति पकड़ेगा, रेत की जरूरत और बढ़ेगी।

(ख) रेत की आपूर्ति जितनी है, उसकी आवश्यकता उससे भी अधिक है। नदियाँ जितनी रेत पैदा करती हैं, उसका खनन उससे 40 गुणा अधिक हो रहा है।

(ग) आज जिस तरह शहरीकरण बढ़ रहा है, शहरी निर्माण कार्य के लिए जिस तरह नदियों से अंधाधुंध रेत को निकाला जा रहा है, वह हमारे लिए बहुत बड़ी समस्या बन गया है।

(घ) सारे देश की नदियों के तटों को गतिविधियों को एक समान संचालित करने के लिए नदी विनियमित क्षेत्र का गठन किया जाए।

(ङ) परिवास-परि (उपसर्ग) |

शहरीकरण करण (प्रत्यय) |

(च) रेत नदी में उसके बहाव को बनाए रखने में सहायक होती है। यदि उसमें से रेत निकाल ली जाती है तो उसका प्राकृतिक बहाव गड़बड़ा जाता है।

 \huge  \bold {{@QianNiu}}

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