World Languages, asked by bhatiajay604, 8 months ago

10 नीति वाक्य का संकल्प कीजिए​

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Answered by bhimika09
3

Answer:

आज की दुनिया में लोगों के अंदर प्रेम भावना कम होती जा रही है तो वहीं कुछ लोग ऐसे भी है जो अपने घमंड में इतने चूर रहते हैं कि उन्हें लगता है कि वह प्यार भी बाजार में खरीद लेंगे ऐसे लोगों के लिए कवि ने इस दोहे में बड़ी सीख दी है –

दोहा:

प्रेम न बाड़ी ऊपजै, प्रेम न हाट बिकाय।

राजा परजा जेहि रूचै, सीस देइ ले जाय।।

दोहे का अर्थ:

इस दोहे में कवि कहते हैं कि प्रेम खेत में नहीं पैदा होता है और न ही प्रेम बाज़ार में बिकता है। चाहे कोई राजा हो या फिर कोई साधारण आदमी सभी को प्यार आत्म बलिदान से ही मिलता है, क्योंकि त्याग और बलिदान के बिना प्रेम को नहीं पाया जा सकता है। प्रेम गहन- सघन भावना है – खरीदी बेचे जाने वाली वस्तु नहीं है!

क्या सीख मिलती है:

कवि के इस दोहे से हमें यह सीख मिलती है कि हमें प्यार पाने के लिए लोगों के भरोसे को जीतने की कोशिश करनी चाहिए और आत्म बलिदान करना चाहिए तभी हम सच में किसी का प्यार पा सकते हैं या फिर किसी से सच्चे मन से प्यार कर सकते हैं।

कबीर दास जी का नीति का दोहा नंबर 2 – Kabir ke Niti ke Dohe 2

जो लोग घमंड में चूर रहते हैं कवि ने उन लोगों के लिए अपने इस दोहे में बड़ी सीख दी है –

दोहा:

जब मैं था तब हरि‍नहीं, अब हरि‍हैं मैं नाहिं।

प्रेम गली अति सॉंकरी, तामें दो न समाहिं।।

दोहे का अर्थ:

इस दोहे में कबीरदास जी कहते हैं कि जब तक मन में अहंकार था तब तक ईश्वर से मिलन नहीं हुआ लेकिन जब घमंड खत्म हो गया तभी प्रभु मिले अर्थात जब ईश्वर का साक्षात्कार हुआ। तब अहम खुद व खुद खत्म हो गया।

इसमें कवि कहते हैं कि ईश्वर की सत्ता का बोध तभी हुआ जब अहंकार गया. प्रेम में द्वैत भाव नहीं हो सकता। प्रेम की संकरी-पतली गली में एक ही समा सकता है- अहम् या परम! परम की प्राप्ति के लिए अहम् का विसर्जन जरूरी है।

क्या सीख मिलती है:

कवि के इस दोहे से हमें यह सीख मिलती है कि हमें अपने अंहकार को त्याग कर ईश्वर की सच्चे मन से भक्ति करनी चाहिए तभी हमें मोक्ष की प्राप्ति हो सकती है।

कबीर दास जी का नीति का दोहा नंबर 3 – Kabir ke Niti ke Dohe 3

इस दोहे में कवि कबीरदास जी ने उन लोगों को बड़ी सीख दी है जो लोग बिना प्रयास किए ही कुछ पाने की चाहत रखते हैं अर्थात बिना मेहनत किए ही फल की इच्छा रखते हैं –

दोहा:

जिन ढूंढा तिन पाईयां, गहरे पानी पैठ।

मैं बपुरा बूडन डरा, रहा किनारे बैठ।।

दोहे का अर्थ:

इस दोहे में कवि कबीरदास जी कहते हैं कि जो लोग प्रयत्न करते हैं, वे कुछ न कुछ वैसे ही पा ही लेते हैं जैसे कोई मेहनत करने वाला गोताखोर गहरे पानी में जाता है और कुछ लेकर आता है। लेकिन कुछ बेचारे लोग ऐसे भी होते हैं जो डूबने के भय से किनारे पर ही बैठे रह जाते हैं और कुछ नहीं पा पाते।

Explanation:

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Answered by poonammishra148218
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Answer:

आज की दुनिया में लोगों के अंदर प्रेम भावना कम होती जा रही है तो वहीं कुछ लोग ऐसे भी है जो अपने घमंड में इतने चूर रहते हैं कि उन्हें लगता है कि वह प्यार भी बाजार में खरीद लेंगे ऐसे लोगों के लिए कवि ने इस दोहे में बड़ी सीख दी है

Explanation:

Step 1: दोहा:

प्रेम न बाड़ी ऊपजै, प्रेम न हाट बिकाय।

राजा परजा जेहि रूचै, सीस देइ ले जाय।।

दोहे का अर्थ:

इस दोहे में कवि कहते हैं कि प्रेम खेत में नहीं पैदा होता है और न ही प्रेम बाज़ार में बिकता है। चाहे कोई राजा हो या फिर कोई साधारण आदमी सभी को प्यार आत्म बलिदान से ही मिलता है, क्योंकि त्याग और बलिदान के बिना प्रेम को नहीं पाया जा सकता है। प्रेम गहन- सघन भावना है – खरीदी बेचे जाने वाली वस्तु नहीं है!

Step 2: क्या सीख मिलती है:

कवि के इस दोहे से हमें यह सीख मिलती है कि हमें प्यार पाने के लिए लोगों के भरोसे को जीतने की कोशिश करनी चाहिए और आत्म बलिदान करना चाहिए तभी हम सच में किसी का प्यार पा सकते हैं या फिर किसी से सच्चे मन से प्यार कर सकते हैं।

कबीर दास जी का नीति का दोहा नंबर 2 – Kabir ke Niti ke Dohe 2

जो लोग घमंड में चूर रहते हैं कवि ने उन लोगों के लिए अपने इस दोहे में बड़ी सीख दी है –

दोहा:

जब मैं था तब हरि‍नहीं, अब हरि‍हैं मैं नाहिं।

प्रेम गली अति सॉंकरी, तामें दो न समाहिं।।

दोहे का अर्थ:

इस दोहे में कबीरदास जी कहते हैं कि जब तक मन में अहंकार था तब तक ईश्वर से मिलन नहीं हुआ लेकिन जब घमंड खत्म हो गया तभी प्रभु मिले अर्थात जब ईश्वर का साक्षात्कार हुआ। तब अहम खुद व खुद खत्म हो गया।

इसमें कवि कहते हैं कि ईश्वर की सत्ता का बोध तभी हुआ जब अहंकार गया. प्रेम में द्वैत भाव नहीं हो सकता। प्रेम की संकरी-पतली गली में एक ही समा सकता है- अहम् या परम! परम की प्राप्ति के लिए अहम् का विसर्जन जरूरी है।

Step 3: क्या सीख मिलती है:

कवि के इस दोहे से हमें यह सीख मिलती है कि हमें अपने अंहकार को त्याग कर ईश्वर की सच्चे मन से भक्ति करनी चाहिए तभी हमें मोक्ष की प्राप्ति हो सकती है।

कबीर दास जी का नीति का दोहा नंबर 3 – Kabir ke Niti ke Dohe 3

इस दोहे में कवि कबीरदास जी ने उन लोगों को बड़ी सीख दी है जो लोग बिना प्रयास किए ही कुछ पाने की चाहत रखते हैं अर्थात बिना मेहनत किए ही फल की इच्छा रखते हैं –

दोहा:

जिन ढूंढा तिन पाईयां, गहरे पानी पैठ।

मैं बपुरा बूडन डरा, रहा किनारे बैठ।।

दोहे का अर्थ:

इस दोहे में कवि कबीरदास जी कहते हैं कि जो लोग प्रयत्न करते हैं, वे कुछ न कुछ वैसे ही पा ही लेते हैं जैसे कोई मेहनत करने वाला गोताखोर गहरे पानी में जाता है और कुछ लेकर आता है। लेकिन कुछ बेचारे लोग ऐसे भी होते हैं जो डूबने के भय से किनारे पर ही बैठे रह जाते हैं और कुछ नहीं पा पाते।

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