10. 'प्राण जाएँ पर वृक्ष न जाएं के अनुसार अमृतादेवी के योगदान के बारे में लिखिए और उसकी 'चिपको आंदोलन' से
तुलना कीजिए।
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उस समय दिल्ली के मुगल सम्राट औरंगजेब का शासन था तथा राजस्थान में जोधपुर के राजा थे - अजीत सिंह। जोधपुर के राजा अजीत सिंह को आलीशान महल बनाने की इच्छा हुई किंतु जब महल में ईंटों की पकाई हेतु ईंधन की आवश्यकता हुई तो सभी चिंतित हो गए क्योंकि उस मरुभूमि क्षेत्र में वनों का अभाव था। इसी समय किसी ने राजा अजीत सिंह का खेजड़ली गांव के हरे-भरे वनों की ओर ध्यान आकृष्ट कराया। तत्काल खेजड़ली के वनों को काटने के लिए राज्य कर्मचारी अपनी-अपनी कुल्हाड़ियां लेकर रवाना हो गए। वर्षा ऋतु का समय होने से गांव के लगभग सभी पुरुष खेतों में गए हुए थे। जब वे कर्मचारी पेड़ काटने की तैयारी में थे तभी श्रीमती अमृता देवी तथा उनकी तीन पुत्रियों — आसु बाई, रतनी बाई तथा भागु बाई ने पेड़ काटने आए कर्मचारियों से प्रार्थना की कि वे हरे पेड़ न काटे क्योंकि हरे पेड़ काटना धर्म के खिलाफ है। अमृता देवी ने कहा कि-
वाम लिया दाग लगे टुकड़ों देवो न दान
सर साठे रूख रहे तो भी सस्तो जान।
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