India Languages, asked by radadiyaavin3818, 1 year ago

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Answered by Akankshagupta1
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अलसस्य कुतो विद्या, अविद्यस्य कुतो धनम् |


अधनस्य कुतो मित्रम्, अमित्रस्य कुतः सुखम् ||

अर्थात् : आलसी को विद्या कहाँ अनपढ़ / मूर्ख को धन कहाँ निर्धन को मित्र कहाँ और अमित्र को सुख कहाँ |

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श्लोक 2 :

आलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान् रिपुः |

नास्त्युद्यमसमो बन्धुः कृत्वा यं नावसीदति ||

अर्थात् : मनुष्यों के शरीर में रहने वाला आलस्य ही ( उनका ) सबसे बड़ा शत्रु होता है | परिश्रम जैसा दूसरा (हमारा )कोई अन्य मित्र नहीं होता क्योंकि परिश्रम करने वाला कभी दुखी नहीं होता |

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श्लोक 3 :

यथा ह्येकेन चक्रेण न रथस्य गतिर्भवेत् |

एवं परुषकारेण विना दैवं न सिद्ध्यति ||

अर्थात् : जैसे एक पहिये से रथ नहीं चल सकता है उसी प्रकार बिना पुरुषार्थ के भाग्य सिद्ध नहीं हो सकता है |
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