100 उदाहरण रीतिकाल काव्य की विशेषताएं लिखिए
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Explanation:
रीतिकाल के बारे में थोड़ा जानकारी- रीतिकाल 'हिंदी साहित्य के इतिहास' का तीसरा काल है।रीतिकाल का समय १६४३ई. से १८४३ई. तक है। इसे उत्तरमध्य काल भी कहा जाता है।रीतिकाल नाम को लेकर विद्वानों में काफी मतभेद रहा है।कोई इसे अलंकृत काल, श्रृंगार काल,कलाकार, रीतिकाल आदि नाम दिया था। वास्तव में रीतिकाल नाम ही उपयुक्त रहा।रीतिकाल के कवियों को तीन श्रेणियों में बाँटा जा सकता है-
(१) रीतिबद्ध कवि
(२) रीतिमुक्त कवि
(३) रीतिसिद्ध कवि
रीतिकालीन काव्य को भी तीन श्रेणियों में बांँटा जाता है-
(१) प्रबंध काव्य
(२)मुक्तक काव्य
(३)नाटक
रीति का अर्थ
संस्कृत काव्यशास्त्र के अंतर्गत "रीति" शब्द उस काव्यांग विशेष के लिए ही रूढ़ है, जिसे काव्य की आत्मा के रूप में घोषित कर आचार्य वामन ने तत्संबंधी पृथक संप्रदाय का प्रवर्तन किया। उनके अनुसार गुण विशिष्ट रचना, अर्थात पदसंघटना-पद्धति विशेष का नाम रीति है। इधर व्याकरण के आधार पर गत्यर्थक रीड धातु से क्तिच् प्रत्यय करके इसकी जो व्युत्पत्ति कही जाती है, उससे यह मार्ग का वाचक ठहरता है। इस प्रकार उक्त दोनों शास्त्रों में इस अकेले ही शब्द के दो पृथक प्रयोग कहे जा सकते हैं। रीति शब्द मार्ग का ही पर्याय शब्द है। यह सहज ही स्वीकार किया जा सकता है कि संस्कृत-काव्यशास्त्र में रीति शब्द काव्य रचना के मार्ग अथवा पद्धति विशेष के अर्थ में ही व्यवहृत हुआ है।
आइए रीतिकाल के प्रवृत्तियों व विशेषताओं के बारे में जान लेते हैं....
रीतिकाल की विशेषताएं रीतिकाल की प्रवृत्तियां-
(१)रीति निरूपण
(२) श्रृंगारिकता
(३)राजप्रशस्ति
(४)नीति और भक्ति
(५) आलंकारिता
(६)नायिका भेद
(७)ब्रजभाषा की प्रधानता
(८)प्रकृति-चित्रण
(९)काव्यरूप
(१०) नारी के प्रति कामुक दृष्टिकोण
(११) चमत्कार प्रर्दशन एवं बहुज्ञता
रीतिकाल की विशेषताएं ritikal ki visheshtaye
Ritikal ki visheshtaye
रीतिकाल की विशेषताएं ritikal ki visheshtaye रीतिकाल की प्रवृत्तियां Ritikal ki pravritiyan
रीतिकालीन कवि देव की जीवन परिचय
(१)रीति-निरूपण:
रीतिकालीन कवियों के रीति-निरूपण की शैलियों का अध्ययन करने पर तीन दृष्टियाँ दृष्टिगोचर होती हैं.
प्रथम दृष्टि तो मात्र रीति-कर्म की है. इनमें वे ग्रंथ आते हैं जिनमें सामान्य रूप से काव्यांग-विशेष का परिचय कराना ही कवि का उद्देश्य है।
द्वितीय प्रवृत्ति में रीति-कर्म और कवि-कर्म का समान महत्त्व रहा है. इसके अंतर्गत लक्षण एवं उदाहरण दोनों उनके रचयिताओं द्वारा रचित है।
तीसरी प्रवृत्ति के अंतर्गत लक्षणों को महत्त्व नहीं दिया गया है. कवियों ने प्राय: सभी छंदों की रचना काव्यशास्त्र के नियमों से बद्ध होकर ही किया है लेकिन लक्षणों को त्याग दिया है।
(२) श्रृंगारिकता
रीतिकाल की दूसरी बड़ी विशेषता श्रृंगार रस की प्रधानता है।इस काल की कविओं में नखशिख और राधा-कृष्ण की प्ररेणा लीलाओं का चित्रण व्यापक स्तर पर हुआ है।राधा कृष्ण के प्रेम के नाम पर नारी के अंग-प्रत्यंग की शोभा,हाव-भाव,विलास चेष्टाएँ आदि में श्रृंगार का सुंदर और सफल चित्रण हुआ है ,किंतु वियोग वर्णन में कवि-कर्म खिलवाड़ बन कर रह गया है ।
(३)राजप्रशस्ति
रीतिकाल के अधिकांश कवि दरवारी कवि थे, राजाओं के आश्रय में रहते थे। इसलिए इन आश्रय दाताओं का गुणगान करना इनकी मजबूरी थी। भूषण जैसे कुछ कवि अपवाद भी हैं।
(४)भक्ति और नीति
रीतिकाल में व्यापक मात्रा से भक्ति और नीति से संबंधित पद भी मिल जाते हैं,जो इस युग की एक नयी देन है। राधा-कृष्ण लीलाओं में श्रृंगार के साथ भक्ति भावना भी विद्यमान है। दरवारी वातावरण के कारण इनके कविताओं में नीति संबंधी उक्तियां भी मिल जाते हैं।
(५)अलंकारिकता
रीतिकाव्य की एक अन्य प्रधान प्रवृत्ति आलंकारिकता है । बहुत सारे कवियों ने अलंकारों के लक्षण उदाहरण दिए।अलंकारों का इतना अधिक प्रयोग हुआ कि वह साधन न रहकर साध्य बन गए , जिससे काव्य का सौंदर्य बढ़ने की अपेक्षा कम ही हुआ ।
(७)ब्रजभाषा की प्रधानता
यह काल ब्रजभाषा का स्वर्णयुग रहा । भाषा में वर्णमैत्री, अनुप्रासत्ज,ध्वन्यात्मकता, शब्दसंगीत आदि का पूरा निर्वाह किया गया है । भाषा की मधुरता के कारण मुसलमान कवियों का भी इस ओर ध्यान गया ।
(८)प्रकृति चित्रण
रीतिकाल में प्रकृति-चित्रण उद्दीपन रूप में हुआ है । स्वतंत्र और आलम्बन रूप में प्रकृति चित्रण बहुत कम रूप में हुआ है ।यह स्वाभाविक ही था, क्योंकि दरबारी कवि का, जिसका आकर्षण केन्द्र नारी ही था, ध्यान प्रकृति के स्वतंत्र रूप की ओर जा ही कैसे सकता था ।
(९)काव्य-रूप
रीति काल में मुक्तक-काव्य रूप को प्रधानता मिली । राजाओं की कामक्रिडा और काम-वासना को उत्तेजित करने एवं उनकी मानसिक थकान को दूर करने के लिए जिस कविता का आश्रय लिया गया, वह मुक्तक ही रही । अत: इस काल में कवित्त और सवैयों की प्रधानता रही ।
(१०)नारी के प्रति कामुक दृष्टिकोण
रीतिकालीन कवियों में नारी का नख-शिख वर्णन व्यापक पैमाने पर हुआं है।नारी के वाह्यरूप,स्थुल एवं
मांसल चित्रण में उनकी वृत्ति अधिक रही है।वह समय ही ऐसा था कि नारी को भोग विलास की वस्तु माना जाता है।कामुक दृष्टिकोण से देखा जाता था।
(११) चमत्कार प्रर्दशन एवं बहुज्ञता
इस युग के कवियों ने चमत्कार प्रर्दशन के साथ बहुज्ञता का भी प्रर्दशन अपने ग्रंथों में किया है। चमत्कार प्रर्दशन के अंतर्गत विभिन्न अलंकारों के प्रयोग के साथ शब्दों की पच्चीकारी एवं रमनीयता पर ज्यादा ध्यान दिया गया है, वही बहुज्ञता को प्रर्दशित करने साहित्येतर विषयों, ज्योतिष,गणित, काव्य जैसे विषय को भी अपने काव्य का विषय बनाया है।