Math, asked by jangnoob52, 6 months ago

10th sanskrit vanam kema asaman​

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Answered by Rohit57RA
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Answered by bponna2006
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Answer:

भूटान में सुना था काशी का नाम, बनारस में बनाया ऐसा संस्कृत घर कि दुनिया से पढऩे आते लोग

वाराणसी. भूटान में सुना था काशी का नाम और दोस्त के साथ संस्कृत पढऩे बनारस चले आये। शहर में संस्कृत की पढ़ाई की और फिर पीएचडी कर अपनी मेहनत से सम्पूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के तुलनात्मक धर्म दर्शन विभाग में अध्यापक बन गये। संस्कृत ने जीवन में ऐसा रस खोला कि देववाणी ही सफलता की मंत्र बन गयी। शहर में संस्कृतगृहम के नाम से आवास बनाया और वही से सभी को नि:शुल्क शिक्षा दे रहे हैं। विदेश से संस्कृत पढऩे आने वाले भी यही से ज्ञान प्राप्त कर रहे हैं।

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कभी भूटान के स्थायी निवासी रहे प्रो.हरिप्रसाद अधिकारी की कहानी बताती है कि आपको कैसे सफलता मिल सकती है। स्वर्गीय छविलाल अधिकारी के पुत्र को अपने पिता से ही विरासत में संस्कृत का ज्ञान मिला था। प्रारंभिक शिक्षा भूटान के संस्कृत विद्यालय में हुई थी। वही पर अध्ययन करने के दौरान काशी का नाम सुना। पता चला कि संस्कृत पढऩा है तो काशी से अच्छा स्थान नहीं है। प्रो.अधिकारी के मन में काशी का नाम ऐसा बसा कि 1977 में 16 साल की आयु में दोस्त के साथ बनारस आ गये। मिश्रिरपोखरा स्थित एक संस्कृत महाविद्यालय से पूर्व मध्यमा (कक्षा 9) से लेकर शास्त्री (स्नातक) तक की पढ़ाई की। इसके बाद संस्कृत विश्वविद्यालय में आचार्य व पीएचडी करने के बाद अध्यापक हो गये। भूटान की नागरिकता छोड़ कर भारत की नागरिकता ले ली और संस्कृत की सेवा करने में जुट गये।

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जहां भी जाते हैं संस्कृत पढऩे वालों की लग जाती है लाइन

संस्कृत में रोजगार की कमी के नाम पर लोग देववाणी से दूर होते जा रहे हैं लेकिन प्रो.हरिप्रसाद अधिकारी की सफलता के पीछे संस्कृत है। विश्वविद्यालय की कक्षाओं में छात्रों को संस्कृत का ज्ञान देते हैं। अतिरिक्त समय मिलता है तो भी छात्र संस्कृत का अध्ययन करने के लिए चले आते हैं। सस्कृतगृहम् नाम के आवास में प्रतिदिन सुबह 7.30 बजे से 9.15 बजे तक देशी व विदेशी छात्रों के नि:शुल्क संस्कृत की शिक्षा देते हैं। प्रो.हरिप्रसाद अधिकारी कहते हैं कि मेरा सब कुछ संस्कृत है। विभिन्न देशों के पांच हजार से अधिक छात्रों को संस्कृत की नि:शुल्क शिक्षा दी है। इसमे अमेरिका, UK, मॉरीशस से लेकर नेपाल व भूटान के छात्र भी शामिल है। विश्वविद्यालय से रिटायर हो जाने के बाद देश में घुम-घुम कर लोगों को संस्कृत की शिक्षा देने का लक्ष्य रखा है। बच्चों को भी संस्कृत की शिक्षा दी है जो देववाणी को आगे ले जाने का काम करेंगे।

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