11(4)/हरि हैं राजनीति पढ़ि आए।समुझी बात कहत मधुकर के, समाचार सब पाए।इक अति चतुर हुते पहिलैं ही, अब गुरु ग्रंथ पढ़ाए।बुद्धि जानी जो उनकी,जो उनकी, जोग-सँदेस पठाए।ऊधौ भले लोग आगे के, पर हित डोलत धाए।अब अपनै मन फेर पाइहैं, चलत जु हुते चुराए।ते क्यौं अनीति करें आपुन, जे और अनीति छुड़ाए।राज धरम तो यहै 'सूर', जो प्रजा न जाहिं सताए।।अलंकार बताइए।
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उद्धव द्वारा कृष्ण के सन्देश को सुनकर तथा उनके मंतव्य को जानकर गोपियों को बहुत दुख हुआ । गोपियाँ बात करती हुई व्यंग्यपूर्वक कहती हैं कि वे तो पहले से ही बहुत चतुर - चालाक थे ।अब राजनीतिक कारण से मथुरा गये हैं तो शायद राजनीति शास्त्र मे भी महारत हासिल कर ली है और हमारे साथ ही राजनीति कर रहे हैं ।वहाँ जाकर शायद उनकी बुद्धि बढ़ गई है तभी तो हमारे बारे में सब कुछ जानते हुए भी उन्होंने हमारे पास उद्धव से योग का सन्देश भेजा है । उद्धव जी का इसमे कोई दोष नहीं । वे तो अगले ज़माने के आदमी की तरह दूसरों के कल्याण करने में ही आनन्द का अनुभव करते हैं । हे उद्धव जी ! यदि कृष्ण ने हमसे दूर रहने का निर्णय ले ही लिया है तो हम भी कोई मरे नही जा रहीं । आप जाकर कहिएगा कि यहाँ से मथुरा जाते वक्त श्रीकृष्ण हमारा मन भी अपने साथ ले गए थे । हमारा प्रकार से , कोई भी कष्ट पहुँचे । यही एक राजा का धर्म है ।
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हरि हैं राजनीति पढ़ि आए। समुझी बात कहत मधुकर के, समाचार सब पाए। इक अति चतुर हुते पहिलैं ही, अब गुरु ग्रंथ पढ़ाए। बढ़ी बुद्धि जानी जो उनकी, जोग-सँदेस पठाए। ऊधौ भले लोग आगे के, पर हित डोलत धाए। अब अपनै मन फेर पाइहैं, चलत जु हुते चुराए । ते क्यौं अनीति करैं आपुन, जे और अनीति छुड़ाए। राज धरम तौ यहै 'सूर', जो प्रजा न जाहिं सताए।