Sociology, asked by vikaskadu1976, 5 hours ago

11. बाह्य जगाकडे बघण्याची पद्धती म्हणजे काय? 2 points
O
अ) मानवता
O ब) परिदृष्टी
O क) दया
O ड) सहानुभूती​

Answers

Answered by piyushkumar2231
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Explanation:

वामी विवेकानन्द का कथन है ‘यदि तुम्हारे अन्दर दूसरों के प्रति सहानुभूति नहीं है तो तुम संसार के सबसे बड़े बुद्धिवादी, विद्वान क्यों न हो, तुम कुछ भी नहीं बन सकोगे’। सहानुभूति वह भाव है जो मानवता और कोमलता की पहचान कराता है। ऐसा भाव हमें हमारे तुच्छ स्वार्थो की ओर से हटाता है। सहानुभूति करने वाला व्यक्ित अपनी निजता में अनेक आत्माओं का रूप बन जाता है। जब हम में सहानुभूति के भाव होते हैं तो हम दूसरे की दृष्टि से देखते हैं, दूसरों के हृदय द्वारा अनुभूति प्राप्त करते हैं। हम जब सहानुभूति के महत्व को ठीक तरह से समझ लेते हैं तब ही हम दूसरों के मनोभावों को यथार्थ रूप से समझ सकते हैं। दीन दुखी, रोगी, अभावग्रस्त लोगों के साथ तत्स्वरूपता स्थापित कर एकात्म भाव अनुभव कर सकते हैं और उन्हें सहायता देन के लिए कुछ न कुछ कर सकते हैं, उन्हें आनन्द प्रदान कर सकते हैं। अपना कुछ त्याग करके सच्ची सहानुभूति दे सकते हैं। कोरी सहानुभूति, सहानुभूति नहीं हो सकती। किसी अभावग्रस्त आदि के प्रति सहानुभूति के भाव हमारे हृदय को विशाल बनान के साथ आत्मिक शक्ित को परिपुष्ट करके मानवता के बीज बोती है। सहानुभूति के अभाव से अभिमान जन्म लेता है और सहानुभूति हमें निजी स्वार्थो और आत्म केन्द्रित जीवन से ऊपर उठाती है। सहानुभूति वह पारसमणि है जो हमारे जीवन को स्वर्ग जैसा सुख और आनन्द दे सकती है। सब मानवों के लिए एक जैसे सुख साधन या सामाजिक स्तर नहीं हैं। ऐसे में हम पाएंगे कि कहीं तो सुख साधनों की बहुतायत है और कहीं घोर अभाव। ऋग्वेद के एक मंत्र में मानव की सेवा को ईश्वर की सेवा कहा है। अगर हमारी सहानुभूति और समवेदना केवल वाचिक या मौखिक रहती है तो वह विद्रूप बन जाती है। सहानुभूति सेवा ऐसी होनी चाहिए जिससे सहानुभूति पाने वाला अपन को दीन-हीन न समझे और अपने आपको समाज स कटा न समझे।ं

Answered by kukadegayatri
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Answer:

मानवता

परी दृष्टी

द या

सहानभूती

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