Hindi, asked by RohitDhawan00, 7 months ago

11. निम्नलिखित विषयों में से किसी एक विषय पर दिए गए संकेत बिंदुओं के आधार पर 80-100 शब्दों में
अनुच्छेद लिखिए-
(क) भय विन होत न प्रीत
1 पंक्ति का अर्थ 2 विद्यालयों में प्रभाव
3. दैनिक जीवन में प्रभाव
(ख) मन की चंचलता
1. मन की अस्थिरता
2. क्यों होती है? 3. चंचलता दूर करने के ​

Answers

Answered by aayushkumar1747
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ho gayi hai or ye hai Mumbai meri

Answered by Anonymous
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 \huge \fbox \red{A} \fbox \pink{n} \fbox \blue{s} \fbox{w} \fbox \green{E} \fbox \orange{r}

ख) मन की चंचलता

१. मन की स्थिरता-

मानव शरीर में मन सबसे शक्तिशाली कारक है। पूरे शरीर को यदि कोई संचालित करने वाला है तो मन ही है। मन में अनेक प्रकार की शक्तियां निहित हैं। विद्युत की गति से भी तेज गति वाला व दसों इंद्रियों का राजा मन इतनी तीव्र गति से इधर-उधर दौड़ता है कि इसको एक स्थान पर रोकना अत्यंत दुष्कर कार्य है।

यह मन समस्त ज्ञानेंद्रियों के साथ अलग-अलग व एक साथ रहकर पूरे शरीर का संचालन करता रहता है। गीता में भगवान श्रीकृष्ण से अर्जुन ने इस मन के संबंध में प्रश्न किया कि प्रभु यह मन तो बड़ा चंचल है, इसे वश में करना तो वायु को वश में करने के समान है। भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को समझाते हुए कहा कि वास्तव में मन को वश में किया जाना तो अत्यंत दुष्कर कार्य है, परंतु अभ्यास व वैराग्य से इसे वश में किया जाना संभव है। महर्षि पतंजलि ने भी कहा है कि अभ्यास और वैराग्य से इस मन को वश में किया जा सकता है। मन ही जीव का बंधन कारक भी है और यही जीव का उद्धारक भी है। मन में अपार शक्तियां निहित हैं, परंतु अविद्या से उत्पन्न अज्ञान से आवृत्त हो जाने के कारण वह इस पार यानी जगत के प्रपंच में, इंद्रियों के आकर्षण और सांसारिक विषयों में पड़ जाता है। वह उस पार यानी जगत से परे परा जगत को नहीं जान पाता। ऐसा मन जगत में फंसाने वाला, जीव को बंधन में डालने वाला शत्रुवत हो जाता है। मन के अंदर पूर्ण क्षमता है कि वह जगत के उस पार यानी दिव्य जगत के रहस्यों को जानकर ज्ञान से परिपूर्ण हो जाए। तुच्छ विचारों को त्यागकर सद्विचारों को अंगीकार करता हुआ सभी इंद्रियों के विषयों से जब मन शांत हो जाता है, तब यही मन मित्रवत हो जाता है। मन को मित्रवत रखना ही श्रेयष्कर होगा। सत्य को जानने के लिए मन को सदैव सद्विचारों में लगाए रखना चाहिए। रहस्यों को जानने के लिए और ईश्वर की अनुभूति करने के लिए मन रूपी दर्पण के मैल को सदैव साफ करते रहना चाहिए। तभी मन रूपी दर्पण में परमात्मा की झलक दिखाई पड़ने लगेगी और तब मानव मन शांति व आनंद से परिपूर्ण हो सकेगा।

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