11) विरह को कवि ने किस रूप में प्रस्तुत किया है और यह कहाँ बसता है ?
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कबीरदास कह्ते है कि जिस व्यक्ति के हृदय में ईश्वर के प्रति प्रेम रुपी विरह का सर्प बस जाता है, उस पर कोई मंत्र असर नहीं करता है। अर्थात् भगवान के विरह में कोई भी जीव सामान्य नहीं रहता है। उस पर किसी बात का कोई असर नहीं होता है
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