11 varsh ka samay ki summary??
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हमारी विरासत
पं. रामचंद्र शुक्ल (1884-1941)
बस्ती जिले के अगोना ग्राम में जन्मे और स्वाध्याय से साहित्य, मनोविज्ञान, इतिहास तथा अन्यान्य भाषाएं पढ़ते हुए रामचन्द्र शुक्ल कभी हेडक्लर्क बने और कभी ड्राइंग मास्टर. 'नागरी प्रचारिणी पत्रिका' का भी संपादन किया. 'हिन्दी साहित्य का इतिहास' लिखा और बाद में हिन्दी अध्यापक के रूप में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की शोभा भी बढ़ाई.
विविधतापूर्ण व्यक्तित्व के धनी शुक्ल जी 'चिंतामणि' जैसे निबंध लिखते हैं तो ब्रजभाषा में कविताएं भी लिखते हैं और 'लाइट ऑफ एशिया' का अनुवाद भी करते हैं. तुलसीदास, सूरदास और जायसी पर व्यावहारिक समीक्षाएं लिखीं. संक्षेप में कहें तो शुक्ल जी जैसा समीक्षक भारत की किसी अन्य भाषा में भी अब तक नहीं हुआ. साहित्यिक इतिहास लेखक, निबंधकार तथा समीक्षक के रूप में तो वे चर्चित हैं ही, ग्यारह वर्ष का संमय (1903) कहानी के लिए भी इन्हें स्मरण किया जाएगा.
पंडित जी ने अपने इतिहास में अपनी इस कहानी को हिन्दी की प्रथम कहानी के दावेदारों में सम्मिलित किया है. डॉ. लक्ष्मी नारायण लाल ने शिल्पविधि की दृष्टि से इस कहानी को हिन्दी की प्रथम कहानी माना है. द्विवेदी जी भी इसे आधुनिकता के लक्षण से युक्त मानते हैं. हिन्दी की पहली कहानियों में मौलिकता के गुणों से भरपूर यह कहानी शीर्ष पर है. दुलाई वाली को नंबर तीन और इस कहानी को नंबर दो पर तो शुक्ल जी ने सहर्ष स्वीकार किया है.
प्रस्तुत है पं. रामचंद्र शुक्ल की प्रतिनिधि कहानी : ग्यारह वर्ष का समय.
बस्ती जिले के अगोना ग्राम में जन्मे और स्वाध्याय से साहित्य, मनोविज्ञान, इतिहास तथा अन्यान्य भाषाएं पढ़ते हुए रामचन्द्र शुक्ल कभी हेडक्लर्क बने और कभी ड्राइंग मास्टर. 'नागरी प्रचारिणी पत्रिका' का भी संपादन किया. 'हिन्दी साहित्य का इतिहास लिखा और बाद में हिन्दी अध्यापक के रूप में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की शोभा भी बढ़ाई.
विविधतापूर्ण व्यक्तित्व के धनी शुक्ल जी 'चिंतामणि' जैसे निबंध लिखते हैं तो ब्रजभाषा में कविताएं भी लिखते हैं और 'लाइट ऑफ एशिया' का अनुवाद भी करते हैं. तुलसीदास, सूरदास और जायसी पर व्यावहारिक समीक्षाएं लिखीं. संक्षेप में कहें तो शुक्ल जी जैसा समीक्षक भारत की किसी अन्य भाषा में भी अब तक नहीं हुआ. साहित्यिक इतिहास लेखक, निबंधकार तथा समीक्षक के रूप में तो वे चर्चित हैं ही, ग्यारह वर्ष का संमय (1903) कहानी के लिए भी इन्हें स्मरण किया जाएगा.
पंडित जी ने अपने इतिहास में अपनी इस कहानी को हिन्दी की प्रथम कहानी के दावेदारों में सम्मिलित किया है. डॉ. लक्ष्मी नारायण लाल ने शिल्पविधि की दृष्टि से इस कहानी को हिन्दी की प्रथम कहानी माना है. द्विवेदी जी भी इसे आधुनिकता के लक्षण से युक्त मानते हैं. हिन्दी की पहली कहानियों में मौलिकता के गुणों से भरपूर यह कहानी शीर्ष पर है. दुलाई वाली को नंबर तीन और इस कहानी को नंबर दो पर तो शुक्ल जी ने सहर्ष स्वीकार किया है.
प्रस्तुत है पं. रामचंद्र शुक्ल की प्रतिनिधि कहानी : ग्यारह वर्ष का समय.