12/60 तेरे देखिबे कों सबही त्यों अनदेखी करी, तू हू जौ न देखे तो दिखाऊँ काहि गति रे। सुनि निरमोही एक तोही सों लगाव मोही, सोही कहि कैसें ऐसी निठुराई अति रे। विष सी कथानि मानि सुधा पान करौं जान, जीवन-निधान है बिसासी मारि मति रे। जाहि जो भजै सो ताहि तजै घनआनँद क्यों हति कै हितूनि कहौ काहू पाई पति रे॥
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