12. साख-मुद्रा का सृजन किसके द्वारा किया जाता है?
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क्या आपके दिमाग में कभी यह सवाल आया है कि बैंक किस प्रकार लोगों की छोटी छोटी बचतों को जमा करके एक बहुत बड़ी राशि अपने पास जमा कर लेते हैं. यहाँ पर यह बताना जरूरी है कि मार्च 2017 में भारतीय स्टेट बैंक के पास कुल जमा संपत्ति 20,44,751 करोड़ थी और कुल देयताएं 27,05,966 करोड़ थीं. क्या आप यह अनुमान लगा सकते हैं कि भारतीय स्टेट बैंक के पास इतनी जमा संपत्ति कैसे आई.
जबकि उसकी देनदारी तो उसे भी ज्यादा है.
आइये इस लेख में यह जानने का प्रयास करते हैं कि बैंक के पास इतनी अधिक मात्रा में संपत्ति कैसे जमा हो जाती है और बैंक इस जमा संपत्ति का क्या करता है और इससे किस प्रकार लाभ कमाता है.
व्यापारिक बैंक जमा स्वीकार करने तथा ऋण देने की प्रक्रिया के दौरान साख मुद्रा का सृजन करते हैं.
साख निर्माण की प्रक्रिया इस प्रकार है:
मान लीजिये कोई व्यक्ति 1000 रुपये बैंक में जमा करके एक बचत खाता खोलता है. इस जमा को प्राथमिक जमा (primary deposit) कहा जाता है. बैंक 1000 रुपये की पासबुक में एंट्री करके पासबुक खाताधारक को दे देता है. अब बैंक अपने अनुभव के आधार पर यह मान लेता है कि यह खाता धारक एक बार में 10% से अधिक राशि को नही निकलेगा अर्थात इस मांग को पूरा करने के लिए बैंक अपने पास जमा की गयी राशि का केवल 10% अर्थात 100 रुपये रखेगा और बकाया का 900 रुपये किसी उद्यमी को उधार देने के लिए अलग रख लेता है.
अब मान लो व्यक्ति A को किसी व्यवसाय को शुरू करने के लिए 900 रुपये की जरुरत है तो वह बैंक जाता है और 900 रुपये का ऋण ले लेता है. बैंक A के नाम का भी एक खाता खोल देता है और पासबुक जारी करके उसमे 900 रुपये की एंट्री कर देता है अर्थात व्यक्ति A अपनी इच्छा के अनुसार कभी भी इस रुपये को निकाल सकता है. यहाँ पर भी बैंक अपने अनुभव के आधार पर यही सोचता है कि व्यक्ति A एक बार में 10% से अधिक धन की निकासी नही करेगा अर्थात बैंक को व्यक्ति A के चेक का भुगतान करने के लिए सिर्फ 90 रुपये (इसे कैश रिज़र्व कहा जाता है) रखने की जरुरत है बकाया का 810 रुपये बैंक के पास फिर से किसी और को उधार देने के लिए बच गया है.
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