120 words essay on मै नदी हूँ in hindi
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उद्गम स्थान ऊंचे पहाड़ झरने और हिमालय से बर्फ पिघलने के कारण मैं अस्तित्व में आती हूं.
मैं जब हिमालय से चलती हूं तब मैं बहुत ही पतली और मुझ में पानी भी बहुत कम होता है लेकिन जैसे-जैसे में मैदानी क्षेत्रों की तरफ बढ़ती हुई मेरे पानी का स्तर बढ़ जाता है और मैं चोड़ी भी होती जाती हूं.

भारत में मेरे जैसी कई नदियां बहती हैं जैसे गंगा, यमुना,सिंधु, ब्रह्मपुत्र, गोदावरी,नर्मदा आदि है यह मेरे जैसी ही विशाल है.
मैं जहां से भी निकलती हूं उस क्षेत्र को हरा-भरा बना देती हूं और वहां अगर बंजर भूमि भी है तो उसको भी उपजाऊ बना देती हूं.
मैं जब बहना शुरू करती हूं तब मेरे आगे कई कठिनाइयां आती हैं जैसे ऊंचे पहाड़ बड़े-बड़े पेड़-पौधे आदि लेकिन मैं उन सबको काटते हुए निरंतर बहती रहती हूं मैं कभी हार नहीं मानती हूं.
मैं कई सालों तक निरंतर अपने पथ पर बहती रहती हूं लेकिन कभी-कभी धरती में भूकंप आने के कारण कुछ स्थान ऊंचे हो जाते हैं तो मैं भी अपना रास्ता बदल लेती हैं लेकिन यह हजारों सालों में एक बार ही होता है.
मैं जहां से भी बैठी हूं उसके आसपास इंसानी बस्तियां और जंगली जीव जंतु अपना घर बना लेते हैं क्योंकि मेरे जैसे ही उनका जीवन चलता है.
मैं हमेशा सभी प्राणियों का भला करती हूं लेकिन बदले में मुझे इंसानों द्वारा सिर्फ प्रदूषण ही मिलता है इस बात का मुझे बहुत दुख होता है क्योंकि मेरा पवित्र और शुद्ध जल प्रदूषित हो जाता है जिसके कारण कई मूक प्राणियों की मृत्यु हो जाती है.
मुझमें कहीं जल अधिक होता है तो कहीं कम होता है वर्षा के मौसम में मुझ में अधिक पानी होता है और मैं उस समय बहुत तेजी से बहती हूं. मैं बहती हुई अंत में समुंदर में जा कर मिल जाती हूं.
मैं नदी हूं आज मैं आपको मेरे उद्गम से लेकर अत तक के सफर की आत्मकथा सुनाने जा रही हूं. मेरे उद्गम के कई स्थान है मैं कभी हिमालय से बहती हूं तो कभी पहाड़ों से, झरनों से तो कभी मैं वर्षा के जल से अस्तित्व में आती हूं. मैं जब बहना चालू करती हूं तब मैं बहुत कम स्थान घेरती हूँ.
लेकिन जैसे-जैसे मैं मैदानी क्षेत्रों की ओर बढ़ती हूं वैसे-वैसे मेरा आकार भी बड़ा होता जाता है और मैदानी क्षेत्रों में पहुंचने के बाद मेरा आकार इतना बड़ा हो जाता है कि मेरे एक तट से दूसरे तट पर जाने के लिए नाव या पुल का सहारा लेना पड़ता है.
यह उसी प्रकार है जिस प्रकार मनुष्य जन्म लेता है तो छोटा होता है और जैसे-जैसे समय बीतता है वह बड़ा होता चला जाता है उसी प्रकार जब मेरा जन्म होता है तो मैं बहुत छोटी होती हूं लेकिन दूरी बढ़ने के साथ मैं भी बड़ी होती जाती हूं.
मैं जब बहना शुरू करती हूं तब मेरे सामने कई प्रकार की बाधाएं आती हैं जैसे कभी कोई बड़ा पहाड़ आ जाता है तो मैं डरती नहीं हूं मैं उसे काट कर आगे बढ़ जाती हूं. मुझ में बहुत शक्ति होती है मैं किसी भी कठोर से कठोर वस्तु को काट सकती हूं चाहे वो बड़ा पहाड़ी क्यों ना हो.
मैं जब बहती हुई पहाड़ों से गिरती हूं तब मैं बहुत तेज गति से मैदानी क्षेत्रों की ओर बढ़ती हूं इस समय मेरे आगे कुछ भी आ जाए मैं उसे अपने साथ बहा ले जाती हूं. और जब मैं मैदानी क्षेत्रों में पहुंची हूं तब भूमि समतल होने के कारण मेरा बहाव भी कम हो जाता है फिर मैं सांप की तरह टेढ़ी-मेढ़ी बहती हूं इसी स्थान पर मुझ में सबसे ज्यादा जल समाया हुआ होता है.
मैं जब वहां बहना चालू करती हूं तब मैं अकेली नहीं होती हूं मेरी जैसी कई नदियां और भी होती है वह बीच रास्ते में मुझसे मिलती है और मुझ में समा जाती हैं जिससे मैं और विशालकाय हो जाती हूं.
मैं बहती हुई जिस भी क्षेत्र से गुजरती हूं वहां की भूमि को हरा-भरा कर देती हूं वहां पर सुख और शांति ला देती हूं. और जब मैं किसी बंजर भूमि पर पहुंचती हूं तो मैं साथ में उपजाऊ मिट्टी भी साथ लेकर चलती हूं और वहां पर छोड़ देती हूं उसके बाद वहां पर कोई कमी नहीं रहती है वहां पर भी फसलें लहराती हैं चारों और हरियाली छा जाती है.
मेरा जल पीकर जंगल की सभी प्राणी खुश हो जाते हैं उन्हें नया जीवन मिल जाता है मैं पूरे जंगल को हरा-भरा रखती हूं. जैसे-जैसे मैं आगे बढ़ती गई इंसानों ने मेरे ऊपर पुल बना दिए और मेरे तटो के पास आकर बस गए.
गर्मियों के दिनों में जब बारिश नहीं होती है और अकाल पड़ जाता है तो सभी लोग मेरे ऊपर निर्भर होते हैं मेरे जन्म से ही उनको सभी प्राणियों को नया जीवन मिलता है. मैं अकाल के समय में भी मेरे ऊपर निर्भर प्राणियों का साथ नहीं छोड़ती हूँ.
मैंने इस पृथ्वी को बदलते देखा है मैंने कई राजाओं को रंक बनते देखा है मैंने कई बड़ी-बड़ी लड़ाईयां देखी है मैंने किसी वीर को इतिहास रचते देखा है.
कुछ लोग मुझे देवी की समान पूजते है यह देख कर मुझे बहुत अच्छा लगता है लेकिन जब वे ही लोग मुझ में गंदगी फैलाते हैं तो मुझे बहुत ही बुरा लगता है क्योंकि मेरे जल में कई और प्राणी भी अपना जीवन जीते हैं और गंदगी फैलने के कारण मेरा जल प्रदूषित हो जाता है जिस कारण मुझमें समाए हुए प्राणी जैसे मछली, कछुए, मगरमच्छ आदि का जीवन संकट में पड़ जाता है.
नदी हमें सीख देती है कि हमेशा मुश्किलों से डरने की वजह हमें लड़ना चाहिए तभी हम अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकते है.
मैं जब हिमालय से चलती हूं तब मैं बहुत ही पतली और मुझ में पानी भी बहुत कम होता है लेकिन जैसे-जैसे में मैदानी क्षेत्रों की तरफ बढ़ती हुई मेरे पानी का स्तर बढ़ जाता है और मैं चोड़ी भी होती जाती हूं.

भारत में मेरे जैसी कई नदियां बहती हैं जैसे गंगा, यमुना,सिंधु, ब्रह्मपुत्र, गोदावरी,नर्मदा आदि है यह मेरे जैसी ही विशाल है.
मैं जहां से भी निकलती हूं उस क्षेत्र को हरा-भरा बना देती हूं और वहां अगर बंजर भूमि भी है तो उसको भी उपजाऊ बना देती हूं.
मैं जब बहना शुरू करती हूं तब मेरे आगे कई कठिनाइयां आती हैं जैसे ऊंचे पहाड़ बड़े-बड़े पेड़-पौधे आदि लेकिन मैं उन सबको काटते हुए निरंतर बहती रहती हूं मैं कभी हार नहीं मानती हूं.
मैं कई सालों तक निरंतर अपने पथ पर बहती रहती हूं लेकिन कभी-कभी धरती में भूकंप आने के कारण कुछ स्थान ऊंचे हो जाते हैं तो मैं भी अपना रास्ता बदल लेती हैं लेकिन यह हजारों सालों में एक बार ही होता है.
मैं जहां से भी बैठी हूं उसके आसपास इंसानी बस्तियां और जंगली जीव जंतु अपना घर बना लेते हैं क्योंकि मेरे जैसे ही उनका जीवन चलता है.
मैं हमेशा सभी प्राणियों का भला करती हूं लेकिन बदले में मुझे इंसानों द्वारा सिर्फ प्रदूषण ही मिलता है इस बात का मुझे बहुत दुख होता है क्योंकि मेरा पवित्र और शुद्ध जल प्रदूषित हो जाता है जिसके कारण कई मूक प्राणियों की मृत्यु हो जाती है.
मुझमें कहीं जल अधिक होता है तो कहीं कम होता है वर्षा के मौसम में मुझ में अधिक पानी होता है और मैं उस समय बहुत तेजी से बहती हूं. मैं बहती हुई अंत में समुंदर में जा कर मिल जाती हूं.
मैं नदी हूं आज मैं आपको मेरे उद्गम से लेकर अत तक के सफर की आत्मकथा सुनाने जा रही हूं. मेरे उद्गम के कई स्थान है मैं कभी हिमालय से बहती हूं तो कभी पहाड़ों से, झरनों से तो कभी मैं वर्षा के जल से अस्तित्व में आती हूं. मैं जब बहना चालू करती हूं तब मैं बहुत कम स्थान घेरती हूँ.
लेकिन जैसे-जैसे मैं मैदानी क्षेत्रों की ओर बढ़ती हूं वैसे-वैसे मेरा आकार भी बड़ा होता जाता है और मैदानी क्षेत्रों में पहुंचने के बाद मेरा आकार इतना बड़ा हो जाता है कि मेरे एक तट से दूसरे तट पर जाने के लिए नाव या पुल का सहारा लेना पड़ता है.
यह उसी प्रकार है जिस प्रकार मनुष्य जन्म लेता है तो छोटा होता है और जैसे-जैसे समय बीतता है वह बड़ा होता चला जाता है उसी प्रकार जब मेरा जन्म होता है तो मैं बहुत छोटी होती हूं लेकिन दूरी बढ़ने के साथ मैं भी बड़ी होती जाती हूं.
मैं जब बहना शुरू करती हूं तब मेरे सामने कई प्रकार की बाधाएं आती हैं जैसे कभी कोई बड़ा पहाड़ आ जाता है तो मैं डरती नहीं हूं मैं उसे काट कर आगे बढ़ जाती हूं. मुझ में बहुत शक्ति होती है मैं किसी भी कठोर से कठोर वस्तु को काट सकती हूं चाहे वो बड़ा पहाड़ी क्यों ना हो.
मैं जब बहती हुई पहाड़ों से गिरती हूं तब मैं बहुत तेज गति से मैदानी क्षेत्रों की ओर बढ़ती हूं इस समय मेरे आगे कुछ भी आ जाए मैं उसे अपने साथ बहा ले जाती हूं. और जब मैं मैदानी क्षेत्रों में पहुंची हूं तब भूमि समतल होने के कारण मेरा बहाव भी कम हो जाता है फिर मैं सांप की तरह टेढ़ी-मेढ़ी बहती हूं इसी स्थान पर मुझ में सबसे ज्यादा जल समाया हुआ होता है.
मैं जब वहां बहना चालू करती हूं तब मैं अकेली नहीं होती हूं मेरी जैसी कई नदियां और भी होती है वह बीच रास्ते में मुझसे मिलती है और मुझ में समा जाती हैं जिससे मैं और विशालकाय हो जाती हूं.
मैं बहती हुई जिस भी क्षेत्र से गुजरती हूं वहां की भूमि को हरा-भरा कर देती हूं वहां पर सुख और शांति ला देती हूं. और जब मैं किसी बंजर भूमि पर पहुंचती हूं तो मैं साथ में उपजाऊ मिट्टी भी साथ लेकर चलती हूं और वहां पर छोड़ देती हूं उसके बाद वहां पर कोई कमी नहीं रहती है वहां पर भी फसलें लहराती हैं चारों और हरियाली छा जाती है.
मेरा जल पीकर जंगल की सभी प्राणी खुश हो जाते हैं उन्हें नया जीवन मिल जाता है मैं पूरे जंगल को हरा-भरा रखती हूं. जैसे-जैसे मैं आगे बढ़ती गई इंसानों ने मेरे ऊपर पुल बना दिए और मेरे तटो के पास आकर बस गए.
गर्मियों के दिनों में जब बारिश नहीं होती है और अकाल पड़ जाता है तो सभी लोग मेरे ऊपर निर्भर होते हैं मेरे जन्म से ही उनको सभी प्राणियों को नया जीवन मिलता है. मैं अकाल के समय में भी मेरे ऊपर निर्भर प्राणियों का साथ नहीं छोड़ती हूँ.
मैंने इस पृथ्वी को बदलते देखा है मैंने कई राजाओं को रंक बनते देखा है मैंने कई बड़ी-बड़ी लड़ाईयां देखी है मैंने किसी वीर को इतिहास रचते देखा है.
कुछ लोग मुझे देवी की समान पूजते है यह देख कर मुझे बहुत अच्छा लगता है लेकिन जब वे ही लोग मुझ में गंदगी फैलाते हैं तो मुझे बहुत ही बुरा लगता है क्योंकि मेरे जल में कई और प्राणी भी अपना जीवन जीते हैं और गंदगी फैलने के कारण मेरा जल प्रदूषित हो जाता है जिस कारण मुझमें समाए हुए प्राणी जैसे मछली, कछुए, मगरमच्छ आदि का जीवन संकट में पड़ जाता है.
नदी हमें सीख देती है कि हमेशा मुश्किलों से डरने की वजह हमें लड़ना चाहिए तभी हम अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकते है.
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