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निम्नलिखित अवतरणों की सन्दर्भ, प्रसंग सहित व्याख्या कीजिए-
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महल में धाय माँ अरावली पहाड़ बन कर बैठ गई है।
अरावली पहाड़ा (हँसती है) तो तुम लोग बनास नदी
बनकर बहो न। खूब नाचो, गाओ। यो आज कोई उत्सव
का दिन नहीं था, फिर भी उन्होंने कहा, मेरे बनवाए हुए
मयूर-पक्ष कुण्ड में दीपदान करो। मालूम हो, जैसे मेघ
पानी-पानी हो गये हों और बिजलियाँ टुकड़े-टुकड़े हो
गई हों।
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अरावली के आखिरी दिन ऐसा जरूर होगा
एक अवतारी पुरुष आएंगे
एक नबी पुकारेगा
लेकिन बात ऐसी है कि वे दोनों आई फोन पर व्यस्त होंगे
उन्हें न धनिए, न हरी मिर्च, न मेथी, न आलू, न टमाटर, न जीरे और न हरे चने की जरूरत होगी
क्योंकि उनके बैग में
मैक’डी के बर्गर, मैकपफ और सालसा रैप होंगे.
अरावली का इसके अलावा यहां और क्या अंत होगा?
त्रिभुवन की कविता ‘अरावली के आखिरी दिन’ का ये आखिरी हिस्सा है. इसे सुप्रीम-कोर्ट के द्वारा दिए गए एक निर्णय, एक तंज़, एक फटकार और एक हिदायत के साथ जोड़ के देखने की ज़रूरत है. यकीन कीजिए ये एक इमरजेंसी है और बाकी किसी भी राजनैतिक या आर्थिक इमरजेंसी से बड़ी है… बहुत बड़ी!
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